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नवपदवृत्ति: मू. देव. वृ. यशो
॥७०॥
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दिण्णओ, नगरं सुनंदाए पक्खियं, ताहे बहूणि खेल्लणगाणि गहियाणि, रण्णो पासे ववहारच्छेदो, तत्थ पुव्वहुत्तो राया दाहिणतो संघो णंदा ससयणपरियणा वामपासे णरवइस्स, तत्थ राया भणति मम कएण तुब्भे जओ चेडो जाति तस्स भवतु, पडिस्सुयं को पढमं वाहरउ ?, 'पुरिसादीयो धम्मो 'त्ति पुरिसो वाहरउ, ततो नगरजणो आह-एएसि संवयितो माया सद्दावेउ, अविय माया टुक्करकारिया, पुणोऽवि पेलवपवत्ता, तम्हा एसा चेव वाहरउ, ताहे सा आसा हत्थी रहवसभे गहिय मणिकणगविविहचित्तेहि बालभावलोभावएहिं पासधरिएहिं भणइ - एहि वइरसामी ! एहि, ताहे पलोइंतो अच्छइ, जाणइ - जइ संघ अवमन्नामि दीहसंसारिओ भविस्सामि, अविय एसावि पव्वइस्सइ, एवं तिन्नि वारा सद्दावितो न एइ, ताहे से पिया भणतिजइ सुकयव्ववसाओ धम्मज्झयभूसियं इमं वइर ! । गेण्ह लहुं रयहरणं कम्मरयपमज्जणं धीर ! ||१|| ताहेऽणेण तुरियं आगंतूण गहियं, लोगेण जयइ धम्मोति उक्कुट्ठी सीहनाओ कओ, ताहे से माया चिंतेइ मम भाया भत्ता पुत्तो य पव्वइओ, अहं किं अच्छामि ?, एवं साऽवि पव्वईया, सो वइरसामी पव्वाविऊण धणगिरिणा संजईणं चेव सयासे मुक्को, तेण तासि पासे एक्कारस अंगाणि सुयाणि पढंतीणं, ताणि से उवगयाणि, पयाणुसारी सो भगवं, ताहे अट्ठवारिसओ संजइपडिस्सयाओ निक्कालिओ आयरिअसयासे अच्छइ, आयरिया उज्जेणि गया, तत्थ वासं पडइ अहोधारं, से य पुव्वसंगइया जंभगा तेणंतेण वोलेंता तं पेच्छंति, ताहे ते परिक्खानिमित्तं उइण्णा वाणियरूपणं, तत्थ बइल्ले उल्लदित्ता उवक्खडेंति, सिद्धे निमंतिंति, ताहे पट्टिओ जाव फुसियमत्थि ताहे पडिनियत्तो, ताहे तंपि ठियं पुणो सद्दावेंति, ताहे वइरो गंतूण उवउत्तो दव्वओ पुस्सफलादि खेत्तओ उज्जेणी कालओ पाउसो भावओ धरणिछिवणणयणनिमेसादिरहिया पहट्ठतुट्ठा य, ताहे देवत्ति काऊण णेच्छइ, देवा तुट्ठा भणंति-तुमं दट्ठमागया, पच्छा वेउव्वियं विज्जं देति, पुणरवि अन्नया जेठ्ठमासे सन्नाभूमि गयं घयपुण्णेहिं निमंतेन्ति, तर्थाव दव्वादिउवओगो, नेच्छितं, तत्थ से णहगामिणी विज्जा दिन्ना, एवं सो विहरइ, जाणि य ताणि पयाणुसारिलद्धीए गहीआणि एक्कारस अंगाणि ताणि से संजयमज्झे थिरयराणि जायाणि, तत्थ जो अज्झाइ पुव्वगयं तंपिणेण सव्वं गहियं, जाहे वुच्चति पढाहि ततो सो एंतगंपि कुट्टेतो अच्छइ अण्णं सुणेंतो, अण्णया आयरिया मज्झण्हे साहूसु भिक्खं निग्गतेसु सन्नाभूमिं निग्गया, वयरसामीवि पडिस्सयवालो, सो तेसिं साहूणं विटियाओ मंडलीए रएता मज्झे अप्पणा ठाउं वायणं देति, ताहे परिवाडीए एक्कारसवि अंगाणि वाएति पुव्वगयं च, जाव आयरिया आगया चिंतेंति - लहु साहू आगया, सुणंति सद्दं मेघोघरसियमिव बहिया सुर्णेता अच्छंति, नायं जहा वइरोत्ति, पच्छा ओसरिऊण सद्दपडियं निसीहियं करेंति, मा से संका भविस्सइ, ताहे तेण तुरियं विटियाओ सट्ठाणे ठवियाओ, निग्गंतूण दंडयं गेण्हइ, पाए
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वात्सल्ये वज्रस्वामी.
॥७०॥
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