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________________ यतिख समुच्चय. तीए अ परिचाए 5 वि खोगाण चा ति॥ १४ ॥ नणु एवं कह जणि दिघ्तो गामजोश्नरवश्णो । जन्नर अपतविसए गुरुपो लम्गा न जावाणा ॥ १४॥ तित्ययरवयणकरणे आयरिश्राएं पए कयं हो । एत्तोच्चिय नणिअमिणं यरअरलावसंवहा ॥ १४६॥ जिणकप्पाइपवित्ती गुरुवाणाए विरोहिणी न जहा । तह कक्रंतरगमणे विसेसकजास्स पमिबंधो ॥ १४ ॥ जावस्स दुणिरकेवे जिणगुरुआणाण होइ तुबत्तं । सरिसं पासा जणियं महाणिसीमि फुममेयं *॥ १४॥ गुणपुलस्स वि वुत्तो गोश्रमणाएण गुरुकुले वासो। विषयसुदंसणरागा किमंग पुण वच्चमिश्ररस्स ॥ १४॥ य मोत्तबो एसो कुलवहुणाएण समयनपिएणं । बनानावे विश्ह संवेगो देसणाहिं ॥ १५० ॥ खंताश्गुणुक्करिसो सुविहियसंगण बंजगुत्ती य । गुरुवेयावच्चेण य होइ महाणिकरालाहो ॥१५॥मूढो श्मस्स चाए एएहिं गुणेहिं वंचिठे हो। एगागिविहारण यस्सर नणिशं च उहमि ॥१५॥ जह सागरंमि मीणा संखोहं सागरस्स असहंता। निति त सुहकामी निग्गयमित्ता विएस्संति ॥ १५३ ॥ एवं गबसमुद्दे सारणमाईहिं चोथा संता । निति त सुहकामी मीणा व जहा विणस्संति ॥ १५४ ॥ नणिश्रा श्रआयामि विच दोसेण णावरियन्ति । तद्दिनीए इच्चाश्वयण गुरुकुखं गरुकं ॥ १५५ ॥ जं पुण नया खनिजा इच्चाईसुत्तमेगचारित्ते । तं पुण विसेसविसयं सुनिनणबुधिहि दवं ॥ १५६॥पावं विवक्रायंतो कामेसु तहा असत्रामाणो श्र। तत्युत्तो एसो पुण गीयत्यो चेव संजव॥ १५७ ॥ बागी अन्नाणी किं काहिच्चाश्वयण हो । श्रवियत्तस्स विहारो अविय णिसिशो फुलं समए ॥ १५८ ॥ गीयत्यो श्र विहारो बीउँ गीयत्थनीसिट नपि । एत्तो तश्चविहारो नाणुना जिणवरेहिं॥ १५॥ एगागियस्स दोसा इत्यी साणे तहेव पमिणीए। ॥ ५॥ Jain Educati onal For Personal & Private Use Only v ranelibrary.org
SR No.600196
Book TitleSyadwad bhasha Devdharmpariksha Adhyatmopnishad Adhyatmikmatpariksha Yatilakshansamucchay
Original Sutra AuthorManvijayji, Yashovijay Upadhyay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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