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________________ सिरिचंद रायचरिण उद्देसो ॥४६॥ विक्कमंचियपाणोणं, भयसंका न विज्जइ । न भयं भयमिच्चाहु, धम्मलोबो महाभयं ॥४१॥ ____ अह पमोयवियसियमाणसाओ सासूबहूओ अग्गे गच्छंतीओ कमेण नयरदुबारं उवागच्छित्था । चंदनरिंदो वि ताव ताउ अपुगच्छीअ, वीरमई नयरभंतरम्मि पविसिऊण बहूए इत्थं घेत्तूण नयरीविभूई गुणावलिं दंसंती सगमंडवं पइ पत्थिआ । तत्थ हि 'विलयागणाणं विविहगीअनच्चेहि सद्धिं तुरिअसंनिणाओ जणचित्ताई रंजित्था, सधवजुवईओ य धवलमंगलाई गाउं पउत्ताओ, इअ अणेगविहसोहापेक्खणसुगचित्ताओ ताओ उभे 'एण्हि वरघोडओ इहयं समेस्सई' त्ति नच्चा एगम्मि ठाणम्मि उवविसित्था । इओ य चंदराओ विनयरदुवारसमीवं उवागओ। ___ इह वीरसेण-चंदा,-वईण संजम-सिवपयसंपत्ती । वीरमईए विज्जा, पयारणं तह य सुण्हाए ॥१॥ तह य विमलापुरीए, पुत्तवहूए समं समागमणं । पढमुदेसे भणियं वुत्तं अच्छेरसंजुत्तं ॥२॥ ॥ इअ तवागच्छाहिवइ-सिरिकयंबप्पमुहाणेग-तित्थोद्धारग-सासणप्पहावग-आबालबंभयारि-सूरीसरसेहर-आयरियविजयनेमिसूरीसर-पट्टालंकार-समयण्णु-वच्छल्लवारिहि-आयरियविजयविण्णाणसूरीसर-पट्टधर-सिद्धतमहोदहिपाइअभासाविसारयायरिय-विजयकत्थूररिणा विरइए पाइअसिरिचंदरायचरिए वीरसेणनरवईचंदावईणं परमपयपत्तिसरूवो तह य-वीरमईविज्जासंपत्ति-पुत्तबहू-विप्पयारण विमलापुरी-समागमणरूवो पढमो उद्देसो समत्तो॥१॥ ॥४६ १ वनिता । Jein Educaban Interat For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600181
Book TitleSiri Chandrai Chariyam
Original Sutra AuthorKastursuri, Chandrodayvijay
Author
PublisherNemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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