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________________ सिरिचंदरायच रिप ॥६३॥ Jain Education International भूमिधरम्मि रक्खिज्जइ, गन्भसमए परिपुण्णे सा महादेवी पुत्तं पसवीअ, दासीमुहाओ पुतजम्मणं सुणिऊण पट्टिमाणसो भूवई तीए दासीए निअंगलग्गाहरणाइयं दाऊण तं विसज्जित्था । अह हरिसभरनिम्भरहिओ नरवई पुत्तजम्ममहूसवं नियविभवाणुसारेण करावित्था, सन्चर्हि सुयवद्धावणिया पर्यट्टिआ, रायंगणम्मि मंगल - तूराई वाइयाई, जुबईजणाणं धवलमंगलगीयाई पट्टियाई, गेह-हट्टपंतीओ झय-तोरणालंकियाओ निष्फणाओ, महादेवीर पुत्तपसवो जाओ त्ति सोच्चा पउरजणा पमुइयचित्ता हर्विसु, पमोयभरभरिएण नरिंदेण सुहदिणम्मि 'कणयज्झय' त्ति अभिधाणं पुत्तस्स निम्मियं, जम्मओ सो कुट्ठिरोगदूसिओ होत्था । वेज्जेहिं बहुविहुवया रे कवि पुत्रकम्मुदरण सो नीरोगो न जाओ, रयणखाणीए रयणं पित्र स रायपुत्तो भूमिघरम्मि संठिओ दिणे दिणे वड्दिउं लग्गो, बाहिं पुत्तस्स अणिग्गमणे पउरजणा राय सुयविलोभणे जायकुऊहला अप्पमेयहरिसं घरंता निदेस-विएस- समुपण- विविहवत्थाऽऽभूसणाई घेत्तूर्णं नरिंदसहाइ समागच्छसु, भूवई पणमिऊण जहा रिहद्वात्थि कुमारदंसणुक्कंठिए ते सव्वे हं साहित्था - ' रायपुत्तो अहरीकयदेवकुमारो अणुवमख्वसंपयासोहिरो संपयं भूमिघरम्मि थिओ अस्थि, एयम्मि कुमारम्मि कासइ दिद्विनिक्खेवो मा होज त्ति वयसा बालो वि गुणसंपया अवालो एसो भूमिघराओ वाहिरं न निक्कासिज्जइ, अओ अयं कुमारो भूगेहम्मि चितो धाइपहपरिजणसेविओ सुक्क पक्खे निसायरो विव पइदिणं कलाओ गिors, इत्थं सुगूढमंता अम्हे निवाए सेण कुमारदंसणुक्कंठिए परजणे संबोहित्था' । अह एवं संबोहिया नयरजणा सच्चे मण्णमाणा अईत्र पमुइयचित्ता नरिंदपुण्ण संपयं पसंसित्था, ताणं रहस्सं अजाणता ते वसु-संपुण्णसुह- सादृणो नरवई सुरकुमारसरिस For Personal & Private Use Only बीओ! उसो ॥६३॥ www.jainelibrary.org
SR No.600181
Book TitleSiri Chandrai Chariyam
Original Sutra AuthorKastursuri, Chandrodayvijay
Author
PublisherNemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size6 MB
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