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________________ श्री प्रवचनपरीक्षा ८ विश्रामे ॥२.११॥ AGHOUGH O Jain Educationa International क्षादयस्तापसादयो वा तत्रोपचारस्याप्यसंभवाद्, एवं चैत्यशब्देन सूत्रसम्मत्यैव जिनप्रतिमां समर्थ्य चैत्यशब्देन न साधुर्नवा - ईन् भण्यते इति सूत्रसम्मत्यैव समर्थयन्नाह - 'रायप सेणिअ'त्ति राजप्रश्नीयज्ञाताधर्मयोश्चैत्यशब्देन न साधुर्नवाऽर्हभिति भण्यते, तथाहि - 'तए णं तस्स चित्तस्स सारहिस्स तं महाजणसद्दं जणकलकलं च सुणेत्ता पासेत्ता इमेआरूवे अन्भत्थिए जाव समुप्प - जित्था - किन्हें अज्ज जाव सावत्थीए नयरीए इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा रुदमहेइ वा मउंदमहेइ वा नागमहेइ वा भूअमहेह वा जकूखमहेइ वा धूममहेइ वा चेइअमहेइ वा रूक्खमहेद वा गिरिमहेइ वा दरिमहेइ वा अगडमहेइ वा तडागमहेइ वा नईमहेइ वा सरमहेइ वा सागरमहेइ वा जण्णं इमे बहवे उग्गा भोगा राइण्णा खत्तिआ इक्खागा कोरव्या जाव इन्भा इन्भपुत्ता व्हाया कयबलिकम्मा जहोववाइए जाव अप्पेगइआ हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पेगइआ पादचारविहारेण महया वंदावंदेहिं णिग्गच्छंति, एवं संपेहेइ २ त्ता कंचुइअपुरिसं सद्दावेद २त्ता एवं व्यासी- किण्हं भो देवाणुप्पि ! अज सावत्थीए णयरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे उग्गा भोगा० णिग्गच्छंति ?, तएणं से कंचुइपुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स आगमणगहिअविणिच्छए चित्तं सारहिं करयलपरिग्गहिअं जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी - णो खलु देवाणुपिआ ! अज सावत्थीए णयरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे जाव वंदावंदेहिं णिग्गच्छंति, एवं खलु भो देवाणुपए ! पासावच्चिओ केसीनामं कुमारसमणे जाव दूइजमाणे इहमागए जाव विहर " ति (५४) श्रीराजप्रश्नीयोपाने, अत्र चैत्यमहोत्सवनिषेधेन न चैत्यशब्देन साधुर्भण्यते इति दर्शितं, अथाद्वाव्यत्वाभावं दर्शयन्नाह - " णायेत्यादि ज्ञातधर्मकथा चैत्यशब्देन नाईन् भण्यते, तथाहि - "तए णं से कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव एग दिसामिमुहे णिग्गच्यमाणे पासइ २त्ता कंचुइजपुरिसं सहावेइ २त्ता एवं वयासी किष्णं देवाणुप्पि ! अज रायगिहे For Personal and Private Use Only चैत्यशब्दार्थः ॥२११९॥ www.jainelibrary.org
SR No.600172
Book TitlePravachan Pariksha Part 02
Original Sutra AuthorDharmsagar
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1937
Total Pages356
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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