________________
श्रीप्रवचनपरीक्षा ४ विश्रामे
॥४१९॥
पोसहसालार घरे वा आवस्मयं करतीति, तत्थ जइ साहसगासे करेति तत्थ का विही ?, जइ पारंपरभयं नन्थि, जवि केणइ समं | विवाओ नत्थि, जइ कस्सव ण धरोति, मा तेण अंछविअंछिअं कडूढिजति, जइ धारणगं दहूण ण गेण्हति मा नासिज्जहित्ति, | पढमं जड़ अ वावारं ण वावारेति ताहे घरे चैव सामातितं काऊण उवाहणाओ मोत्तॄण सच्चित्तदव्वविरहिओ वच्चति, पंचसमिओ |तिगुत्तो इरिआए उपउत्तो जहा माहू, भासाए सावज्रं परिहरंतो, एसगाए कई लेट्टं वा पडिलेहितु एवं आदाणनिकखेवणे, खेलसिंघाणे ण विगिंचति, विगिंचतो वा पडिलेहिअ पमजिअ थंडिले, जत्थ चिट्ठति तत्थ गुत्तिनिरोहं करोति, एताए विहीए गंता तिविहेण णमिऊण माहुणो पच्छा साहुसकखिअं सामाइतं करेति' करेमि भंते! सामाइयं सावजं जोगं पञ्चकखामि दुविहं तिविण | जाव साहू पज्जुवासामि चिकाऊण, जड़ चेड़आई अस्थि तो पढमं वंदति, साहूणं सगासातो स्यहरणं निसिअं वा मग्गति, अह घरे तो में उग्गहिअं स्यहरणं अस्थि, तस्म असति पोत्तस्स अंतेण, पच्छा इरितावहिआए पडिकमइ, पच्छा आलोइत्ता चंदति, आयरि| आदी जहा रायणिआपत्ति, पुणोवि गुरुं वंदिता पडिलेहित्ता निविट्टो पुच्छति पढति वा, एवं चेइए वि, असति माहुवेइआणं पोसहमालाए सगिहे वा, एवं सामाइअं आवस्मयं वा करेति, तत्थ नवरि गमनं तत्थि, भणति - जावनिअमं समाणेमि, जो इहटिपत्तो सो किर एंतो सव्विदीए एति तो जणस्म अड्ढा होति, आदिता य साहुणी सप्पुरिसपरिग्गहेण, कतसामाइएण य पाएहिं आगंतन्त्रं, तेण ण करेति, आगतो माहसमासे करेति, जइ सो मावओ ण कोइ उट्टेति, अह अहाभहउत्ति पूआ कया होहिति भणतिनि ताहे पुव्वरअं आसणं कीरति, आयरिआ णं उट्टित्ता अच्छंति, तत्थ उहंतमहंते दोसा भाणिअव्वा, पच्छा सो इइटिं पत्नी मामातितं काऊण पडिकंतो वंदना पृच्छति, सो किर मामातितं करेंतो मउडं ण अवणेति, कुंडलाणि णाममुदं पुप्फतंबोलपाचार
Jain Education International
For Personal and Private Use Only
ईर्यापाfथकाविचारः
१४१९।।
www.jainelibrary.org