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________________ हरणं श्रीउत्तरा०याए परचक्केण घेप्पति, पच्छा केणति अनेण भण्णति-' अभितरगा खुभिता' गाथा ( १३२-१३६ ) अहवा एगस्थ धिग्जाति चूर्णौ णगरे राधा सयमेव चोरो, पुरोहितो भंडेति, पच्छा दोवि हरंति, पच्छा लोगो भणति-'जत्थ राया सयंच रो' गाहा(१३३-१३६) पुत्रीउदा० अहया एगस्स धिज्जाइयस्स धूया, सा य जोव्वणत्था पडिरूवदरिसणिज्जा, सो धिज्जाइओ तं पासिऊण तीए धूयाए अझोववन्नो, छगलोदाध्ययने तीसे तणएण अतीव दुबलीभवति, बंभणीए पुच्छिओ णिब्बंधेण, कहति, ताए भण्णति- मा अधिीत करेसि, तहा करेमि जहा || ॥८९॥ केणइ पओगेण संपत्ती भवति, पच्छा धूतं भणति-अम्ह पुव्वं दारियं जक्खा भुजंति, पच्छा देज्जति, तव कालपक्खचाउद्दसिए जक्खो एहिति, मा णं विमाणेहि, संमाणहिसि, मा य तत्थ तुम उज्जोत काहिसि, तीएवि जक्सकोऊहल्लेण दीवओ सरावण ठइतो, सो य आगतो, सतं परिभोत्तूण रतकीलत्तो पसुत्तो, इमावि कोउगेण सरावगं फोडती, णवरं पेच्छति तायं, ताए नाय, | जे होउ तं होउ, पुव्वं भुंजामि भोगे, पच्छा ताई रतिकिलंताई, उग्गतेवि सूरे ण विबुज्झति, पच्छा बंभणी भणति- 'आचिरुग्ग तए व सूरिए, मागहिया ( १३४-१३७) पच्छा सा तीसे धूया तं सुणेत्ता पडिभणति- तुमए व अम्म ए लवे' मागहिया | (१३५-१३७) पच्छा सा धिज्जाइणी भणति 'नव मास कुच्छीइ धालिता' मागहिया (१३६-१३७ ) अहदा एगेण धिज्जाइतेण तलागं खणावियं, तत्थवि य पालीए देउलं आरामो य कतो, तत्थ य तेण जण्णओ पवत्तितो, छगलगा एत्थ मारे-6 ज्जति, अण्णया य कयाइ सो धिज्जातिओ मरिऊण छगलिओ चेव आयातो, सो य घेनूण अप्पणिज्जएहिं पुत्तेहिं तत्थ चेव ॥८९॥ सातलाए जण्णि मारिउज्जति, सो य जातिस्मरो णिज्जमाणो अपणोच्चयाए भासाए बोब्बुयति, अप्पणा चेव सोयमाणो, जहा मए चेव पवायं एवं, सो यत्रुब्बिएमाणो साधुणा एगेण अतिसीसएण दरसति, तेण भण्णति-'सयमेव य लुक्ख लोविया' CCC कन
SR No.600170
Book TitleUttaradhyayanasutra Curni
Original Sutra AuthorDevvachak
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size6 MB
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