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नन्दिसत्रम्
अवचूरि
॥१३८॥
समलंकृतम्
तत्थेगं उदगबिंदुं पक्खेविजा से नढे । अन्नेऽवि पक्खित्ते सेऽवि नवे । एवं पक्खिप्पमाणेसु पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगबिंदू जे णं तं मल्लगं रावेहिइत्ति, होही से उदगबिंदू जे णं तंसि मल्लगंसि ठाहिति, होही से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं भरिहिति, होही से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं पवाहेहिति एवामेव पक्खिप्पमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं अणंतेहिं पोग्गलेहिं जाहे त्तं वंजणं पूरिअं होइ ताहे हुंति करेइ । नो चेव णं जाणइ केवि एस सद्दाइ तओ ईहं पविसह, तओ जाणइ अमुगे एस सद्दाइ । तओ अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवह, तओ णं धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखिजं वा कालं, असंखिजं वा कालं । से जहा नामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सदं सुणिज्जा तेणं सहोत्ति उग्गहिए, नो चेवणं जाणइ के वेस सद्दाइ तओ ईहं पविसह, तओ जाणइ अमुगे एस सद्दे। तओ णं अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ, तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखिज्ज वा कालं असंखिच्न वा कालं । से जहा नामए केई पुरिसे अब्बत्तं रूवं पासेजा तेणं रूवत्ति उग्गहिए नो चेव णं जाणइ के वेस रूवत्ति, तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस रूवेत्ति, तओ अवायं पविप्सइ, तओ से उगवयं हवइ । तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखिजं वा कालं असंखिनं वा कालं । से जहा नामए केई पुरिसे अव्वत्तं गंधं अग्घाइज्जा तेणं गंधेत्ति उग्गहिए नो चेवणं जाणइ के वेस गंधत्ति । तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस गंधे, तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ ।
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