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________________ (ग) आजे गच्छाज्ञाओना भंगर्नु सर्वत्र साम्राज्य छे, प्रमादी लोको बहु छे, एम कही सद्व्यवहार त्यजवो ए तो नबळानी निशानी छे. धीर पुरुषोनो तो धर्म एवो छे, के ज्यारे तेओ शत्रुओर्नु मोटुं सैन्य जुए, त्यारे तेओ बेवडा बळथी झझूमे अने पाछा न हठेतेवी रीते कर्त्तव्यशील पुरुषोए सर्वत्र अंधाधुंधी जोइ, तेथी न हारता पूर्ण उत्साहपूर्वक अप्रमाद केळवी, प्रमादना राज्य | सामे लडq ज घटे. आ मार्ग कांई बायलानो नथी, के जेथी निरुत्साह थये चाले. एटले गच्छाज्ञाने तोडनाराओने जोइने हताश न थतां उलटुं तेवी स्थिति दूर करवा जाते ज अप्रमत्त थर्बु अने सद्व्यवहार स्वीकारवो. | चारित्र गमे तेटलु कोमळ होइ तेना अंशना खंडनथी सर्वाशन खंडन थतुं होय, तो पण तेथी डरवाने काइ कारण नथी. जो आन्तरिक विरति कायम होय, तो बाह्य प्रवृत्तिमां अमुक देखाती त्रुटि पण खरी त्रुटि नथी. अने जो आन्तरिक विरतिमां ज कांह | पण खलेल पहोंची, तो बाह्य प्रवृत्ति निर्दोष जणावा छतां पण ते निरर्थक ज छे. एटले के बाह्य प्रवृत्तिमा कोइ ने कोइ त्रुटि आवी ज जाय छे एबुं बहानुं काढी आंतरिक विरति प्राप्त करवा प्रयत्न न करवो ए योग्य नथी. कर्त्तव्यनिष्ठ माणस तो आंतरिक विरतिने ज| प्रयत्नपूर्वक केळवे अने कायम राखे. जो तेम थाय तो बाह्य प्रवृत्तिमा अनिवार्यरीते आवेल दोष क्षन्तव्य लेखाय. (घ) आजे कोइ गणनिक्षेपने योग्य पुरुष नथी ए कहे, पण ठीक नथी. संपूर्ण गुणोथी युक्त कोइ न होय छतां ओछामा ओछा मूळगुणोथी युक्त होय, तो ते जरूर भावगुरु होइ शके. क्षमा आदि केटलाक उत्तरगुणो न होवा छतां पंचमहाव्रतरूप मूळगुणो अखंड होय तो तेनामां चंडरुद्राचार्यनी पेंठे चारित्र मानी शकाय अने अखंड मूळगुणवाळा पुरुषो आजे पण दुर्लभ नथी ज. तेथी* गच्छपतिनी दुर्लभतानी दलील नकामी छे. JainEducation international For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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