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________________ वस्तु. टुंकामां (उ) अनेक कल्पित सामाचारीओ अत्यारे देखाय छे खरी, पण शास्त्राचार लुप्त नथी थयो. आजे पण ते अखंडरीते चालती परम्परामां, जोनारने जडी आवशे.. (च) प्रथम जेवा विशेषज्ञ प्रायश्चित्त आपनार अने प्रथम जेवा ज धृतिसंयमसम्पन्न प्रायश्चित्त लेनार आजे नथी. एटलं खरं, छता प्रायश्चित्तनो छेक ज अभाव नथी. समयानुसार प्रायश्चित्त लेनार अने देनार बन्ने प्रत्यक्ष दीसे छे. समयानुसारी प्रायश्चित्तविधि ६ पण देखाय छे. तेम ज थोडी पण तेनी विधि जाणनार गीतार्थ निर्यापक दीसे छे. एथी व्यावहारिक चारित्रनो पक्षपात छोडवो ए योग्य नथी. का वस्तुविशारद उपाध्यायजी पोताना वक्तव्यने स्पष्ट करवा जगोए जगोए आगमप्रसिद्ध दृष्टान्तो (उपमाओ)नो उपयोग करे* . आ उपमाओ भावपूर्ण होइ बौद्ध पिटकमांनी मनोरम उपमाओनी याद आपे छे. तेमांनी केटलीक आपणे अहीं नमूनारूपे जोइए.15 | मूळगुणना अतिचारदोषथी अने उत्तरगुणना अतिचारदोषथी थता चारित्रनाशमां शो तफावत छ ए बताववा उपाध्यायजीए मशक, गाडं अने मंडपना दाखला आप्या छे. तेओ कहे छे के-एक मशक जेने पांच मोटो द्वारो होय, तेमांनु एक पण द्वार खुल्लु रहे, तो तेमां रहेलु बधुं जळ एकदम नीकळी जाय. ते बधां द्वारो बंध होय अने मात्र कोइ नानु कापुंज पड्यु होय, तो ते द्वारा दिपाणी नीकळे, पण ते धीरे धीरे. तेवी रीते पांचमांनो एक पण मूळगुण खंडित थाय तो चारित्ररूप जळ तत्काळ चाल्युं जाय. पण जो एकाद उत्तरगुणमां खामी आवे, तो ते खामी वधता वधतां चारित्रनो नाश काळान्तरे थाय. गाडीनो दाखलो एम समजवानो छे के-गाडीने अनेक अंगो होय छे. तेमां बे चक्र, बे उध अने एक धरी ए पांच अंगो SHORTSGRESOS Jain Educa For Private & Personal use only K Enelibrary.org
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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