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________________ ग्रन्धर्नु REASS - टुंकामां प्रसन्नचंद्रनी घटनामां जो के (बाह्यकारणरूप) व्यवहार हतो, छतां तेमां ध्यानात्मक आंतर कारण न हतुं; एटले केवळज्ञा नना प्रत्ये जोइती कारणसामग्री न होवाथी केवळज्ञान न थाय एमां व्यवहारनी निष्फळता नहि पण सामग्रीनी ब्रुटी ज सिद्ध थाय | वस्तु. छे. कोइ पण कार्य अन्य कारणोना अभावमा मात्र एकाद कारणथी निष्पन्न नथी थतुं. तेमाटे तो सामग्री (समग्र कारणो) ज जोइए. | (ख) जेने निश्चय (ज्ञप्ति के अप्रमादात्मक प्रवृत्तिरूप गुण) प्राप्त थयो, तेने पण सद्व्यवहारतुं विधान एटलामाटे उपयोगी छे, के ते एवा विधानद्वारा पोते प्राप्त करेल गुणोनो प्रवाह सतत चालु राखी शके छे, तेमां विच्छेद आववा देतो नथी, अने उत्तरोत्तर वधारो पण करी शके छे. कोइ पण जातना पूर्व प्रयोगथी, चालता चक्रने ते बंध पड्या पहेलां, कुंभार फरी दंडथी वेग आपे छे, ए एटलामाटे नहि के अत्यारे तेनाथी चक्र चालु कर होय; चक्र तो चालु छे ज, छतां ते फरी फरी एटलामाटे वेग आपे छे, के तेथी वेगनी धारा सतत चालु रहे, अने उत्तरोत्तर वेग वधतो जाय. तेवी रीते अमुक निश्चयदशाए पहोंचेल मनुष्य जो बाह्य || सद्व्यवहारने सेवे तो तेनाथी तेना गुणोनुं सातत्य सचवाय, अने तेमां वृद्धि पण थाय, निश्चयनी अप्राप्तदशामां पण तेने प्राप्त करवा इच्छनार, ए ध्येयथी सद्व्यवहारतुं अनुष्ठान करे, तो तेवा अनुष्ठानद्वारा एने अनुक्रमे निश्चय जरूर प्राप्त थाय, कारण ए अनुष्ठानमा कर्त्तव्यनी स्मृति, अधिक गुणोनुं बहुमान, थएल भूलोनो भूलकरवाना वखत करतां वधारे तीव्र परिणामथी अनुताप, निष्कपटपणे स्वदोषोनुं निवेदन, परमकृपाळु परमात्माना विषयमा भक्ति, विशिष्ट गुणो मेळववानी वृत्ति इत्यादि भावोने लीधे, सन्यव हारतुं अनुष्ठान करता करतां निश्चय जरूर प्राप्त थाय छे. एटलुंज नहि पण एवा भावोने लीधे घणी वार कोइ मोहनी जाळमां | ॥१४॥ 15 पडतो पण बची जाय छे. तेथी निश्चय प्राप्त कयों होय के न कों होय पण सद्व्यवहार अनुष्ठान व्यर्थ नथी ज. AGARMER SER AAES JainEducation For Private Personal Use Only
SR No.600159
Book TitleGurutattva Vinischaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani, Chaturvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1925
Total Pages540
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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