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हुंकामां
॥१२॥
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(ग) चारित्रनुं पालन अत्यारे केटलुं दुष्कर छ ए बताववा शंकावादी कहे छे, के-एक पण गच्छाज्ञानु उल्लंघन एने सूत्रमा | ग्रन्थन जिनाज्ञानुं विराधकपणुं कहेल छे. अने अत्यारे तो गच्छाज्ञाभंगर्नु राज्य ज प्रवर्ते छे. जे होय ते. गच्छाज्ञाओ तोडता ज जणाय छे. माटे चारित्र लइ तेना भंगना दोषमां पडवा करतां अने भावशून्य क्रियाओ करवा करतां चारित्रनी रुचि ज राखवी ए शुं बस | नथी?. एटलुंज नहि पण चारित्र ए एक एवी आंखनी कीकी जेवी कोमळ वस्तु छे, के तेना एक अंशनुं खंडन थतां ते नकामी |ज थइ जाय छे. माटे चारित्र लइ तेने पाळवाना जोखममां पडवा करतां अने नवो दोष लागे तेवा संभवनी नजीक जवा करता चारित्र न स्वीकारतुं अने अशक्त दशामां तेनो पक्षपात ज राखवो ए शु वधारे योग्य नथी. ?
(घ) शंकाकार आगळ वधी कहे छे, के-भला! व्यावहारिक चारित्र तो लइए पण लेवु कोनी पासे? कारण के शास्त्रमा जेनी | आज्ञा मानवानुं कयुं छे ते पुरुष सुशील आदि अनेकगुणयुक्त होवो जोइए जो तेवा गुणथी युक्त न होय तो तेनी आज्ञाने अनुसरवामां | उलटो आज्ञाभंगनो दोष लागे छे. अने आजे तो तेवा गुणोथी युक्त कोइ पुरुष नथी देखातो के जेने गच्छपति बनावी शकाय'.
(ड) शंकाकार कहे छे के-'आजे व्यवहार चारित्र लेवामां एक आफत नथी. तेमा ज्यां देखो त्यां आफत ज छे. जेम केव्यवहारचारित्र एटले गच्छसामाचारी. अने आवी सामाचारीओ गच्छे गच्छे जुदी छे. अनेक आचार्योए अनेक गच्छो प्रवत्तोव्या छे. अने मनःकल्पित सामाचारीओ पण प्रवर्त्तावी छे. एटले आवी कल्पित सामाचारीओनो पण आजे कांइ पार नथी. जे तात्त्विक | हती ते तो आजे लुप्त थइ छे. तेथी कइ सामाचारीने आजे खरी अने कइने खोटी मानवी, एटले कह स्वीकारवी अने कइ न स्वीका|8|॥१२॥ रवी ए ज जाणवू आजे मुश्केल छे'.
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