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(च) छेवटे वर्तमान काळमां व्यवहारचारित्रनो अभाव बतावतां तेनी साबीतीमा शंकाकार कहे छे, के भला! सर्वज्ञ, चतुर्दशपूर्वी, दशपूर्वी जेवा विशिष्टज्ञानी तो अत्यारे कोइ नथी ज. एटले थएल दोषतुं निवारण करवा प्रायश्चित्त कोनी पासे लेवू ?. आजे जेओ प्रायश्चित्त आपे छे ते पोते ज बराबर दोषनुं स्वरूप अने तेना निराकरणनो उपाय न जाणता होवाथी स्वयं अशुद्ध छे. आवा अशुद्ध अने जाते ज अपूर्ण बीजाओने शी रीते शुद्ध करवाना हता?. तेम ज आजे कोइ मासिक, चतुर्मासिक के पंचमासिकादि जेवां प्रायश्चित्तो नथी लेता के नथी देता. एटले प्रायश्चित्तविधि, जेना विना व्यवहारचारित्र न ज संभवे, ते ज आजे लुप्त देखाय छे. तेथी व्यवहारचारित्रनो पक्षपात कर्या करवो एमां शी विशेषता छे ?.'
समाधान. ___ समाधान करता उपाध्यायजी सौथी पहेलां केवळ निश्चयवादीने तेनी निश्चयविषेनी मान्यतामां पकडे छे. तेओ तेने कहे छे के तुं निश्चयथी ज फळसिद्धि कहे छे ते सत्य छे. पण निश्चयतुं खरं स्वरूप नथी समजतो. निश्चयना तथ्य स्वरूपमा व्यवहारनो पण|8 | समावेश थइ जाय छे. कारण के गौण-प्रधानभावे परस्पर सापेक्ष नयो स्वीकार्या सिवाय सम्यग्दृष्टि संभवे ज नहि. अधिकार के परिस्थितिने लीधे क्याइ निश्चय तो क्याइ व्यवहारर्नु प्राधान्य भले होय, पण तेमाए कोइ ने कोइ प्रकारे एकना विना बीजानो संभव ज नथी. एटले के निश्चयथी ज फळसिद्धि छे, ए सिद्धान्तने समजवामां ज खुबी रहेली छे. जो तेनो शब्दार्थ लेवामां आवे तो माणस सत्य चूके. पण तेनी पाछळ रहेलुं हेतु ( कारण ), स्वरूप अने अनुबंध (परिणाम )नुं बधुं तत्त्व विचारे, तो ते ए ज सिद्धा-1 न्तमा व्यवहारतुं पण दर्शन करे,
गुरुत.३
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