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________________ धर्मरत्न प्रकरणम् २६ Jain Education International रुद्दज्झाणोवगओ, नरयावासम्मि पढमपुढवीए । खाडवखडा मिहाणे, पलिआऊ नारओ जाओ ॥ १३ ॥ अह सो सोमाजीवो, चविउं सोहम्मओ विदेहम्मि । सेलम्मि सुंसुमारे, जाओ दंती धवलकंती ॥ १४ ॥ इयरो वितउव्वद्विय, जाओ कीरो तहिं चिय गिरिम्मि । कीरीइ सह रमतो, नरभासाभासिरो भमइ ॥ १५ ॥ कइया वितं गईं, करेणुयानियरपरिगयं दहुं । पुव्वभवन्भासाओ, बहुलबहुलो विचिंतेइ ॥ १६ ॥ विसयसुहाउ इमाओ, किह णु मए वंचियव्वओ एस १ । एवं उवायचिंतणपवणो पत्तो सए नीडे ॥ १७ ॥ ता तत्थ चंदलेहाभिहाण खयरिं हरित संपत्तो । लीलारय त्ति खयरो, भयभीओ भाइ तं कीरं ॥ १८ ॥ भो ! इत्थ गिरिनिउंजे, चिट्ठामेगो इहागमी खयरो । न हु से कहियव्त्रो हं, गओ य मम सो कहेयव्वो । १९ ॥ तो कीर ! खीरमहुमडुरवयण ! मह एवमुवकथं तुमए । तुज्झ वि अहं अवस्सं, करिस्समणुरूवमुवयारं ॥ २० ॥ अह आगओ स खयरो, अदडु लीलारहं पडिनियत्तो । कहियं सुएण एयं, इमस्स सो हरिसिओ हि ॥ २१ ॥ इत्थंतरम्मि तत्थागयं गयं तं जहिच्छियाभमिरं । पासित्तु चिंता सुओ, अहह ! अहो सुंदरोऽवसरो ॥ २२ ॥ तो निविडनियडिनडिओ, ठाउं करिसन्निहिम्मि भणइ पियं । भणियं चसिद्धेरिसिणा, कामितित्थं इमं खित्तं ॥ २३ ॥ जो इत्थ भिगुनिवार्य, करेइ सो लहइ कामियं खु फलं । इय भणिय पियाइ समं, तर्हि वि पत्तो निलुको य ||२४|| तव्वयणपेरिओ पुण, लीलारह खेयरो पियासहिओ । चलचवलकुंडलधरो, उप्पइओ गयणभग्गमि ॥ २५ ॥ १ " वसिह क । " विसिह च । For Private & Personal Use Only अशठत्वगुण ७ तत्र चक्रदेव दृष्टान्तः २६ www.jainelibrary.org
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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