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चक्रदेवचरित्रं त्वेवम्
अस्थि विदेहे चपा, वासपुरं पउरपउरपरिकलियं । तत्थासि सत्थवाहो, अइरुद्दो रुद्ददेवु त्ति ॥१॥ तस्स य भज्जा सोमा, सहावसोमा कयाइ गिहिधम्मं । सा पडिवाइ गणिणीइ बालचंदाइ पासम्मि ।।२।। तं किंचि विसयविमुह, द? पउट्ठो भणेइ से भत्ता । मुंच पिए ! धम्ममिम, भोगि पिव भोगविग्धकरं ॥३॥ सा साहइ भोगेहिं, रोगेहि व मह कयं इमो आह । किं चइ दिट्ठमदिट्ठकप्पणं कुणसि तं मूढे! ॥४॥ सा भणइ इमे विसया, पसुगणसाहारणा वि पच्चक्खा । आणिस्सरिआइफलो, वि किं न धम्मो समक्खो ते ॥५॥ उत्तरदाणअसत्तो, विलक्खचित्तो अईव स विरत्तो। आलवणाइ वि तत्तो, तीइ समं चयइ सव्वत्तो ॥६॥ अन्नं मग्गइ कन्नं, सोमा अत्थि त्ति लहइ न ये तो सो । तम्मारणहेउमहि, ठवइ गिहंतो घडे खिविउं ॥७॥ भणइ पिए ! अमुगघडाउ दाममाणेसु सा वि सरलमणा । जा खिवइ कर कुंभे, ता डक्का कसिणभुयगेण ॥८॥ डका अहं ति पइणो, सा साहइ सो वि गाढसढयाए । गारुडिया ! गारुडिया ! इच्चाइ करेइ हलबोलं ॥९॥ सिग्धं से उल्लडिअं, विहुरेहिं निवडियं च दसणेहिं । विसभीएहि व पाणेहिं दूरदूरेण ओसरियं ॥१०॥ अचइयधम्मा सोहम्मकप्पलीलावयंससुविमाणे । पलिओवमट्टिईया, सोमा सुरसुंदरी जाया ॥११॥
रुद्दो स रुद्ददेवो, नागसिरि नागदत्तसिटिसुयं । परिणीय नीइबाहाइ भंजिउं पंचविहविसए ॥ १२॥ १ तचरितं त्वेम्क । २ हुक।
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