SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सो अइउदारयाए, पइदिवसं असणमाइ समणुन्नं । दाउं कस्सइ उवियं, पच्छा भुंजइ सयं नियमा ॥५६ ॥ सो अण्णदिणे बिंदुजाणे पडिमाठियं सुविहिनाहं । उवसमरस व मुत्तं, दर्बु तुट्ठो थुणइ एवं ॥ ५७ ॥ वपुरि अंगविन्नासु वपुरि लोयणघणलवणिम, कटरि भालु सुविसालु कटरि मुहकमलपसन्निम । अरिरि सरलु भुयजुयलु अरिरि सिरिवच्छह सच्छिम, अई य चरण भवहरण अइ य सव्वंगसुचंगिम । अरि कुणह नयण घणुरंक धउ, बलि वलि जोइवि एहु पहु। देवाहिदेवु! तिहुयणतिलउ परमप्पउ जिम लहु हुं लहुँ।।५८॥ एवं थुणिऊण अणूणभत्तिराएण सुद्धसद्धिल्लो । बहुमाणमुबहतो, जिणम्मि सगिहं इमो पत्तो ॥ ५९॥ पुण्णाणुबंधिपुण्णोदएण अह तस्स भोयणावसरे । सिरिसुविहिजिणो भिक्खाइ आगओ गिहदुवारम्मि ।। ६०॥ तं सुट्ट दट्ट वंदिअ, अमंदआणंदजायरोमचो । पडिलाभेइ जिणिदं, परिवेसिय कामगुणिएणं ।। ६१ ॥ चिंतइ य अहं धन्नो, अञ्ज ममं जम्म जीवियं सहलं । जं पाणिपुडेणमिणं, दाणं गिण्हइ सयं भयवं ।। ६२ ।। अह उग्घुटुं गयणे, अहो ! सुदाणं अहो! सुदाणं ति । वियसियमुहेहि विबुहेहिं ताडिया अमरभेरीओ ॥ ६३ ।। बहुजणजणियचमक, गंधोदगकुसुमवरिसणं जायं । उकोसा वसुहारा, पडिया भुवणंगणे तस्स ।। ६४ ॥ नरसुरअसुरपहू वि हु, बंदित्तं बंदिणो वि से पत्ता । सुहपरिणामेण तया, जाया सम्मत्तसंपत्ती ॥ ६५॥ काउं सुपत्तपत्तं, वित्तं चित्तम्मि जिणमणुसरंतो । सो चइय पूइदेहं, पत्तो पढमं अमरगेहं ।। ६६ ।। तत्तो चविओ एसो, जाओ विणयंधरो उ लोयपिओ । तदाणपुण्णवसओ, इमाउ जायाउ जायाओ ।। ६७॥ काउं सुपत्ताह वि हु, बंदितासमवरिसणं जायं Jain Education International For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy