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नियपुण्णपमाणं गुणवियढिमा सुजेणदुजणविसेसो । नाइ नेगत्थठिएहि तेण निउणा नियंति महिं ॥११॥ तं सुणिय सणियमवगणिय परियणं देसदसणसतण्हो । कुमरो रयणीइ पुराउ निग्गओ खग्गवग्गकरो ॥१२॥ सो वचंतो संतो, अग्गे मग्गे निएइ के पि नरं । निठुरपहारविहुरं, पिवासियं महियले पडियं ॥१३॥ तो सरवराउ सलिलं, गहित्तु उप्पन्नपुण्णकारुण्णो । तं पाइत्ता पवणप्पयाणओ कुणइ पउणतणुं ॥१४॥ पुच्छइ य भो महायस!, को सि तुमं किं इमा अवत्था ते ? । सो भणइ सुयणसिररयण !, सुणसु सिद्ध त्ति हं जोई १५ विजाबलिएण विपक्खजोइणा छलपहारिणा अहयं । एयमवत्थं नीओ, तए पुणो पगुणिओ सगुण! ॥१६॥ तो सो तोसेणं गरुडमंतमप्पित्तु नरवरसुयस्स । सट्ठाणं संपत्तो, कुमरो पुण इत्थ नयरम्मि ॥१७॥ निसि मयणगिहे वुत्थो, चिट्ठइ जा सुट् ठुजग्गिरो कुमरो । ता तत्थेगा तरुणी, समागया पूइ मयणं ॥१८॥ बहिनीहरि जम्पइ, अम्मो! वणदेवया! सुणह सम्मं । इह वासवनरवइणो, सुहिया कमल त्ति हं दुहिया ॥१९॥ मणिरहसुयस्स विक्कमकुमरस्सुजलगुणाणुराएण । दिन्ना पिउणा सो पुण, इण्हि न नजइ कहिं पि गओ ॥२०॥ जह मह इह न हु जाओ, सो भत्ता तो परत्थ वि हविजा । इय पभणिय उल्लंबइ, वडविडविणि जाव सा अप्पं ॥२१॥ मा कुणसु साहसं इय, भैणिरो छुरियाइ छिंदिउं पासं । कमलं कमलसुकोमलवयणेहिं संठवइ कुमरो ।। २२ ॥ इत्तो तस्सुद्धिकए, भडचडगरपरिवुडो तहिं पत्तो। वासवनिवो वि कुमरं, दद्लै हिट्ठो भणइ एवं ॥ २३ ॥ तिलयपुरे अम्हेहिं, गएहिं मणिरहसमित्तमिलणत्थं । तं बालत्ते दिट्ठो, दक्खिण्णसुपुन्न ! वरकुमर ! ॥२४॥ १ °सुयण °क-ख । बहि नीउ जंपड़ जा क । ३°भणिंउ क । ४° सु० क-ख ।
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