________________
जं आणवेइ कुमर त्ति, भणिय तत्थेव गुविलदेसम्मि । सो गोवइ तं रयणं, अह पत्ता दोवि सगिहेसु ॥१४३।। बहुलीवसओ पवसियबुद्धी चिंतेइ सामदेवसुओ । वंचित्तु विमलकुमरं, हरेमि गंतुं तयं रयणं ॥१४४॥ अगणिय कुमरुवयारे, अगणिय तइया वि चेव सो पावो। जत्थ निहितं चिट्ठइ, रयणं पत्तो तमुद्देसं ॥१४५॥ तत्तो उक्खणिउं तं, तत्थुवलं वत्थवेढियं खिविउ । अन्नत्थ निहिय रयणं गिहपत्तो चिंतइ निसाए ॥१४६॥ न हु साहु मए विहियं, जं रयणं नाणियं तयं गेहे । गिहिहिइ कोवि अन्नो, केणवि दिदं धुवं होहि ॥१४७।। इच्चाइ आलजालं, परिचिंतंतस्स तस्स पावस्स । वारिगयस्स गयस्स व, न मणागवि आगया निद्दा ॥१४८।। उहित्तु सो पभाए, तुरियं तुरियं गओ तहिं ठाणे । जा गिहिस्सइ रयणं, ता कुमरो तग्गिहे पत्तो ॥१४९॥ उज्जाणगयं सुणिउं, च वामदेवं लहुं कुमारोवि । पत्तो तहिं च दिट्ठो, आगच्छंतो य इयरेण ॥१५०॥ तो अइसंभंतेणं, तेणं विस्सरियरयणठाणेणं । भीएण सुन्नहियएण, गिहिउं उबलखंडं तं ॥१५१॥ खिवियं कडिवट्टीए, पुट्ठो विमलेण कीस संभंतो । दीससि ? वयंस ! तुह विरहभावओ सोवि पच्चाह ॥१५२॥ तं संठविउं कुमरो, पत्तो जिणमंदिरे समं तेण । मज्झम्मि गओ विमलो, ठिओ य वामो बहिं देसे ॥१५३॥ नाओ कुमरेण अहं, ति संकिरो भीयमाणसो धणियं । नहो नट्ठविवेगो, तओ पएसाउ सिद्विसुओ ॥१५४॥ दवदवपएहि तिहि वासरेहि अडवीस जोयणे गंतु । जा छोडइ मणिगंठिं, ता पिच्छइ उवलसकलं सो ॥१५५॥ हा हा हओ हओ म्हि, ति मुच्छिओ निवडिओ धरणिवट्टे । पच्चागयचेयण्णो, विविहपलावे करेसी य ॥१५६॥
Jain Eduent and
For Private & Personel Use Only
Hainelibrary.org