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________________ श्रीधर्मरत्नप्रकरणम् कृतज्ञताख्योगुणः ॥९२॥ अरिहतचक्किकेसवबलसंभिन्ना य चारणा पुव्वा । गणहर पुलाय आहारगं च न हु भवियमहिलाणं ॥१२९॥ अभवियपुरिसाणं पुण, दस पुग्विाल्लाउ केवलितं च । उज्जुमई विउलमई, तेरस एयाउ न हु हुंति ॥१३०॥ अभवियमहिलाणंपि हु, एयाओ न इंति भणियलद्धीओ । महुखीरासवलद्धी वि, नेव सेसाउ अविरुद्धा ॥१३१॥ ता नूणं वेउब्बियलद्धिपभावेण निम्मियं पहुणा । पुद्धि विरूवरूवं, इमस्स साहावियं तु इमं ।।१३२॥ तो विम्हिएण गुरुणो, मुणिणो य मएऽभिवंदिया सव्वे । दिन्नो य तेहि कयसिवसुहलाभो धम्मलाभो मे ॥१३३॥ सुणिया य सुहारसवरिससुंदरा देसणा खणं तेसिं । पुट्ठो य मुणी एगो, किनामा एस मुणिनाहो? ॥१३४॥ भणियं च तेण मुणिणा, अम्ह गुरू एस भुवणविक्खाओ । बुहनामा बुद्धिनिही, विहरइ अणिययविहारेण ॥१३५।। तं सुणिय अहं हिट्ठो, नमिउं गुरुणो गओ सठाणम्मि। परउवयारिक्कगुरू, गुरूवि अन्नत्थ विहरित्था ॥१३६॥ तेण भणेमि अहं तो, बुहसूरी जइ य एइ इह कहवि । तो तुज्झ बंधुवग्गं, सुहेण धम्मम्मि बोहिज्जा ॥१३७॥ जं मह परिवारस्स य, धम्मे थिज्जत्थमेव तइयावि । विहियं विउविरूवं, तेणं परहियकयमणेगं ॥१३८॥ विमलो भणेइ सुपुरिस !, अन्भत्थिय इत्थ सो समणसीहो । तुमइ च्चिय आणेओ, एवं ति पवज्जए खयरो ॥१३९॥ तो अंसुपुण्णनयणो, कुमरं आपुच्छिउँ रयणचूडो। संपत्तो सट्ठाणं, सुमरंतो विमलगुणनिवहं ॥१४॥ कुमरो वि जिणं थुणिउं, निग्गंतूणं जिणिदभवणाओ। पभणेइ मित्त ! एयं, रयणं इत्थेव गोवेहि ॥१४१॥ गुरूए कहिचि कज्जे, उवजुज्जिहिई इमं महारयगं । गेहे नियं एमेव, जाइही पुण अणायरओ ॥१४२॥ तत्र विमलकुमारकथा। ॥१२॥ in E AA! For Private Personel Use Only jainelibrary.org .
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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