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________________ धर्मरत्नपकरणम् दीर्घदर्शित्वाख्यो गुणः ॥६९॥ १५ अन्नोवि इत्थ दीसइ, ववहारे उवणओ इहं नाए । जह किल कस्सइ गुरुणो, सीसा चत्तारि निप्पना ॥३९॥ आयरियत्तणजुग्गा, पजाएणं सुएण य समिद्धा । अह चिंतिउं पवत्तो, गुरू समप्पेमि कस्स गणं ॥४०॥ तत्तो तेण परिच्छाहेउं देसंतरे विहाराय । का होइ कस्स सिद्धिति, पेसिया उचियपरिवारा ॥४१॥ चउरोवि तओ पत्ता, खेमाइगुणन्निएसु देसेसु । जो तत्थ सव्वजिट्ठो, सायाबहुलो कडुयवयणो ॥४२॥ एगंताणुवगारी, निव्वेयं तेण तह य आणीओ । सव्वो परिवारो जह, अचिरा तस्सुज्झगो जाओ ॥४३॥ वीओ वि सायबहुलत्तणेण नियदेहसंठियं चेव । कारेइ सादरं सीसवग्गमवरं न उण किरियं ॥४४॥ तइओ पुण सारणवारणाइकरणेण निचमुज्जुत्तो । रक्खइ पमत्तभावं, गच्छंतं तं परीवारं ॥४५॥ जो पुण तुरिओ सीसो, सयलमहीमंडलोवलद्धजसो । जिणसमयामयमेहो, दुक्करसामण्णनिरओ य ॥४६॥ ओइण्णदेवलोगं व, भूरिसंतोसपोसमणुपत्तं । निययविहारधरायलमुवजणयंतो नियगुणेहिं ॥४७॥ देसन्नू कालन्नू , सुदीहदंसी जहेव कालज्जो । जाओ पभूयपरिवारपरिगओ विहियजणबोहो ॥४८॥ पत्तो गुरुणो पासे, उवलद्धो तेण तेसि वुत्तंतो। तो निययगच्छमेलणपुव्वो दिन्नो य अहिगारो ॥४९॥ सच्चित्तमचित्तं वा, जं गच्छे छडणारिहं किंचि । पढमेण परिट्ठावणमिमस्स कज्जं ति संठवियं ॥५०॥ जं भत्तं पाणं वा, उवगरणं वा गणस्स पाउग्गं । तं दुइएणापरितंतएण उप्पाइयव्वं ति ॥५१॥ गुरुथेरगिलाणतवस्सिबालसेहाइयाण य मुणीणं । रक्खा दक्ववियक्खणजुग्गा तइयम्मि संठविया ॥५२॥ तत्र धनश्रेष्ठिज्ञातम्। ॥६९॥ Jain Education International For Private Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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