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________________ तो हक्कारिय रण्णा, ते पुट्ठा भो तुमेहि किह हसियं ? । वज्जरइ तत्थ इत्थी, पुज्जा ! सम्म निसामंतु ॥ २१ ॥ सिसुमित्तसज्झकज्जे, किं ताओ इत्तियं वहइ चिंतं ? । इय विम्हयववसाए, मए सपुत्ताइ हसियं तु ॥२२॥ जं तायपसाया रोहिणिं इमं धम्मओ खणद्धेण । पाडेउमहं पि खमा, अहवा केयं वराई मे ? ॥२३॥ जे उवसंता मणनाणिणो य मे सुयजुया य चरणाओ । मंसियपुव्वा तेसिं, संखं पि न कोवि जाणेइ ॥२४॥ जे पुण मए चउद्दसपुव्वधरा खडहडाविया धम्मा । अज्जवि धूलि ब्व रुलंति, तायपायाण पुरओ ते ॥२५॥ तं सोउ चिंतइ निवो, धन्नो हं जस्स मज्झ सिन्नम्मि । भुवणजणजिणणमंसलबलाउ अबलाउ वि इमाओ ॥२६॥ इय सामत्थिय रना, सा तणुअंगी तणूरुहसमग्गा । सयहत्थदिन्नबीडा, सहरिसजिंघियंसिरोदेसा ॥२७॥ तुह संतु सिवा मग्गा, पिट्ठीइ च्चिय बलं पि आगमिही । इय लहु विसज्जिया रोहिणीइ पासम्मि सा पत्ता ॥२८॥ अह तीइ जोइणीए, अहिट्ठिया सा गया जिणहरेवि । अन्नन्नसावियाहिं, समं कुणइ विविहविगहाओ ॥२९॥ न य पूएइ जिणिंदे, देवे वि न वंदए पसन्नमणा । बहुहासबोलबहुला, कुणइ विघायं परेसि पि ॥३०॥ न य कोवि किंपि पभणइ, महिड्डिधूय त्ति तो अइपसंगा । सज्झायझाणरहिया, भणिया एगेण सड्डेणं ॥३१॥ किं भइणि ! अइपमत्ता, धम्मट्ठाणेवि कुणसि इय वत्ता । जं भवियाण जिणेहिं, सया निसिद्धाउ विगहाओ ॥३२॥ तथा चोक्तम्'चुंबियक। Jain Educatan Internationa For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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