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________________ गुणराग धर्मरत्नप्रकरणम् गणः जह आमघडे निहियं, नीरं लहु होइ से विणासाय । तह अप्पाहारनरस्स होइ विज्जा अणत्थाय ॥ ६॥ परिपूणगसमपत्ते, दितो विज्जं गुरू वि पावेइ । बहुविहकिलेसभारं, जणाववायाइदोसे य ॥ ६१॥ भत्तिम्भरनिभरेणं, कुमरेणं पुणवि पणिओ सिद्धो । दाऊण माहणस्स वि, विज्ज पत्तो सए ठाणे ।। ६२॥ तो पुव्वोइयविहिणा, कुमरेण पसाहिया महाविज्जा । पयडीहोउं पभणइ सिद्धा हं तुह सया भद्द ! ॥ ६३ ॥ किंतु दिओ कत्थ गओ, इच्चाइ तए न चिंतियव्वं पि । कालेण फुडं होही, इय भणिय तिरोहिया देवी ॥ ६४ ॥ हा हा कि से जायंति चिंतिरो काउ तीइ विज्जाए। पच्छासेवं कुमरो, पत्तो नंदिउरमझमि ॥६५॥ विज्जाविइन्नचामीयरेण, बहुभोगदाणकलियस्स, मंतिसुएणं सिरिनंदणेण जाया य से पीई ॥६६॥ अह तत्थ पुरे सिरिसरराइणो मंदिरोवरि रमंती । बंधुमइनाम धूया, हरिया केणवि अदिगुण ॥ ६७ ।। तो तन्विरहे राया, मुहूं मुहं मुच्छए रुयइ बहुसो । सयलो वि रायलोओ, सपुरजणो आउलो जाओ ॥६८॥ तं दटुं तिलयमंती, भणेइ सिरिनंदणं नियं पुतं । वच्छ ! नरनाहतणयाणयणोवायं विचिंतेसु ॥६९॥ नहि तुह बुद्धितरीए, विणा इमो वसणसागरो गरुओ। नित्थरिउं पारिज्जइ, तत्तो सिरिनंदणो भणइ ॥७॥ ताय! तुमंमि वि संते, मह सिसुणो को णु बुद्धिअवयासो। उइए सहस्सकिरणे, रेहइ फुरियं न दीवस्स ॥७१॥ तिलयसचिवो वि जंपइ, न य एगंतो इमो इहं वच्छ! । जं पिउणो तणएहिं, गुणाहिएहिं न होयव्वं ॥७२॥ जओ तत्र पुरन्दर राजर्षिकथा Jain Educational For Private & Personel Use Only Mainelibrary.org
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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