SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मा भणसि जन कहियं, रे! रे! एस म्हि तुज्झ पिउ सत्तू । तो खलभलियं विष्पं, संठविउ भणइ कुमरो वि॥२१॥ जं पिउरिउणो उचियं, तं बालो वि हु इमो जणो कुणउ | करुणारसो जइ परं, किंपि खणं नणु निवारेइ ॥ २२ ॥ इय सवियडू कुमरस्स, भणियमायन्निऊण पल्लिवई । फुरियगुरुकोवविज्जू, वरिसइ सरविसरधाराहि ॥ २३॥ खरमारुयलहरी इव, विहलाविय असिलयाइ ताउ लहुं । कुमरो किरणपओगा, चडिऊण रहम्मि चरडस्स ॥ २४ ॥ दाउँ हियए पायं, कर करेणं गहित्तु अह भणइ । रे! कत्थ हणामि तुमं? स आह सरणागया जत्थ ।। २५ ।। चिंतइ कुमरो इमिणा, वयणेण निवारए पहारमिमो। सरणागयाण गरुया, जेण न पहरति भणियं च ॥ २६ ॥ "नयणहीणहं दीणवयणहं करचरणपरिवज्जियहं । बालवुदृबहुखंतिमंतहं विससियहं वाहियहं । रमणिसमणवणिसरण पत्तहंदीणहं दुहियह दुत्थियहं । जे निद्दया पहरंति आसत्तवि कुल सत्तमइ फुड पायालि नयंति ॥२७॥ इय भाविय सो मुको, पल्लिवई विष्णवेइ कुमरवरं । तुह अम्हि किंकरो है, तुह आयत्तं सिरं मम ॥ २८ ॥ इय सप्पणय भणिउं, वज्जभुओ इच्छियं गओ देसं । कुमरो वि दिएण समं, कमेण नंदिउरमणुपत्तो ॥ २९ ॥ तत्थ य बहिरुज्जाणे, वीसमइ इमो समाहणो जाव । ताव वरलक्खणजुयं, ससहरकरधवलसिचयधरं ॥ ३० ॥ गुणगणजुत्तं इंत, कंपि नरं ददु चिंतए कुमरो । एयारिसा सुपुरिसा, नूणं अरिहंति पडिवत्तिं ।। ३१ ।। तो अन्मुट्ठिय दूराउ पायमवधारह त्ति जंपेइ । उववेसिउं सठाणे, कयंजली विष्णवइ एवं ॥ ३२ ॥ सामि! तुह दंसणेणं, जायं सफलं ममागमणमित्य । जइ नाइरहस्सं ता, पहुचरियं सोउमिच्छामि ॥ ३३ ॥ JainEducati-RIX . ForPrivate sPersonal use Only Jainelibrary.org
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy