________________
धर्मरत्नप्रकरणम्
दयालुगुण:१०
तथा हिमुच्चंति झत्ति पुरगुत्तियाई, दाणाई महंति पवत्तियाई । निरु निरुवम किज्जइ हट्टसोह, नच्चंति पउरपाउल अखोह ॥२१२॥
आवंति बहुयजणअक्खवत्त, गायंति कुलबहु कमलनित्त । तहिं पढहि नगारिय भट्ट चट्ट, दीसंति ठाणठाणम्मि नट्ट ।२१३॥ बझंति हु घरि घरि तोरणाई, सोहिज्जइ वररच्छामुहाई। उझिजइ जूवहमूसलसहस, ठाविज्जइ कंचणपुनकलस।।२१४॥ एवं भूमिप्पहु जम्ममहामहु,कारिय दस दिवसइ नयरि। तउ कुमर मणोहरु नामु जसोहरु,संठावइ अइहरिसभरि ॥२१५॥ सो वडंतो नवनवकलाहि नवससहरु व्य पइदिवसं । जाओ य जुब्बणत्थो, जसधवलियसयलदिसिवलओ ।। २१६ ।। अहे अस्थि कुसुमनयरे, ईसाणो इव तिसत्तिपरिकलिओ। ईसाणसेणराया, विजया नामेण से देवी ।। २१७ ॥ सो अभयमईजीवो, सग्गाओ चविय तीइ उयरम्मि । वरधूया संजाया, विणयमैई नाम विक्खाया ।। २१८ ॥ पत्ता य तरुणभावं, सयंवरा पेसिया नरिंदेण । बहुभडचडगरसहिया, कुमरस्स जसोहरस्स इमा ॥२१९ ।। विणयंधरस्स रण्णो, य बहुमए नयरबाहिरुज्जाणे | आवासिया य एमा, विवाहदिवसे य अह पत्ते ॥ २२० । लच्छिबईपमुहेहि, कुमरो मणिरयणकणयकलसेहिं । मज्जाविओ विलेवणवत्थाहरणेहिऽलंकरिओ ॥ २२१॥ आरोविओ गईदे, वीइज्जतो य चारुचमरेहिं । सिरधरियधवलछत्तो, थुव्बंतो मागहजणेण ॥ २२२ ।।
सिंधुरखंधगएणं, अणुगम्मतो निवाइलोएणं । पइदिसिविसट्टरहतुरियघट्टकलिओ य जा जाइ ।। २२३ ॥ १° तह ° ग । २० वई ख-ग । ३° विसद्दक पइदिवसि व ख ।
तत्र यशोधर दृष्टान्तः
४७
in Educatan Interational
For Private Personal use only
www.jainelibrary.org