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________________ धर्मरत्नप्रकरणम् दयालुगुणः१० ४३ बयालीसेसणदोससुद्धपिंडस्स भोयणं विहिणा । अप्पडिबद्धविहारो, सारो धम्मो इय जईणं ।। १११ ॥ जंपेइ तलवरो पुण, गिहत्थधम्मं कहेसु मे भयवं । परउवयारिकमणो, मुणीवि जंपइ तओ एवं ।। ११२।। अरिहं देवो गुरुणो, सुसाहुणो जिणमयं मह पमाणं । इय सम्मत्तपुरस्सरमिमाइ बारस वयाइ इह ॥११३ ॥ संकप्पनिरवराहा, दुहा तिहा तस जिया न हंतवा । कन्नालिआइपमुह, धूलमलीयं न वत्तव्यं ॥ ११४ ॥ खत्तखणणाइ चोरंकारकरमदिन्नयं न घेत्तव्यं, परदारपरीहारो, अहवावि सरदारसंतोसो ॥ ११५ ॥ धणघन्नाइपरिग्गहपरिमाणं माणवेहि कायव्वं । किच्चो सयलदिसासु, अवही अवहीरिउं लोहं ।। ११६ ॥ महुमंसाईचाया, कायव्वा विगइपमुहपरिसंखा । जहमत्ति जत्थदंडो, वज्जेयचो अइपयंडो॥११७॥ समभावो सामइयं, खणिएणं तं सयावि कायव्वं । देसावगासियं पुण, सयलवयाणं पि संखिवणं ।। ११८ ।। देसे सब्वे य दुहा, ससत्ति पोसहवयं विहेयव्वं । साहूण सुद्धदाणं, भत्तीए संविभागवयं ॥ ११९ ॥ एयं दुवालसविहं, गिहिधम्म पाणिणो विहिय विहिणा । कममो विसोहिय कम्मकयवरं जंति परमपयं ।। १२० ।। तं सोउ भणइ कालो, भयवं! एयं करेमि गिहिधम्मं । किंतु कमागयमेयं, हिंसं सेकमि नो चइउं ।। १२१ ।। वागरइ तओ साहू, जइ एवं नो चएसि भो भद्द । इय कुकुडमिहुणं पिव, तो लहिसि भवे अणत्थभरं ॥१२२ ॥ सो आह कहमिमेहिं, जीववहं अचइउं दुहं पत्तं । तो मूलाओ कहिया, मुणिणा तेसिं भवा एवं ॥ १२३।। सुयजणणी सिहिसाणा पसयअहीं मीणसुसुमारा य । मेस छगली य मेस य महिसा कुक्कुडजुगं जाव ॥ १२४ ॥ तत्र यशोधर दृष्टान्तः ४३ Jain Education International For Private Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600153
Book TitleDharmratna Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
Publication Year
Total Pages340
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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