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तवसंजम० माधा सिद्धा ॥ २७॥१०९॥ विकहा एवं भवति
जो संजतो पमत्तो राग-दोसवसगो परिकहेइ।
सा उ विगहा पवयणे पण्णत्ता धीरपुरिसेहिं ॥ २८ ॥ ११ ॥ जो संजतो पमत्तो० गाहा सिद्धा ॥ २८॥११० ॥ संजमगुणट्ठिएणं का कहा ण कहेतव्वा ? का वा कहेतव्वा । इमा ण कहेतव्वा
सिंगाररसुग्गुतिया मोहकुवितफुफुगा हसहसेंति ।
जं सुणमाणस्स कहं समणेण ण सा कहेयवा ॥ २९ ॥ १११॥ सिंगाररसुग्गुतिया० गाहा पाढसमा ॥ २९ ॥ १११ ॥ इमा पुण कहेतव्वा
समणेण कहेतवा तव-णियमकहा विरागसंजुत्ता।
जं सोऊण मणुस्सो वच्चइ संवेग-निव्वेगं ॥ ३० ॥ ११२॥ समणेण कहेतवा० गाहा सिद्धा ॥ ३० ॥ ११२ ॥ अत्थमहंती वि कहा अपरिक्वेसबहुला कहेतवा।
गरत्तणण अत्थं कहा हणइ ॥ ३१॥११३॥ अस्थमहंती० गाहा कमो॥३१॥११३॥
१°सधमओ परि बी.॥ २ °सुत्तइया खं० । सुत्तइया वी० पु. सा०॥ ३°गासहासिति सा०॥ ४ मणूसो है| खं०॥ ५संवेय-णिन्वेयं पु०॥ ६अपरिकिलेस सा॥
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