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________________ सिद्धी य देवलोगो सुकुलुप्पत्ती य होइ संवेगो। नरगो तिरिक्खजोणी कुमाणुसत्तं च णिव्वेओ ॥ २० ॥ १०२॥ सिद्धी य देवलोगो० गाहा जहापाढेण ॥ २० ॥१०२ ॥ एतासिं चतुण्डं कहाणं कस्स का पढमं कहेतव्वा ? भण्णति वेणतितस्स पढमया कहा उ अक्खेवणी कहेतवा। तो ससमयगहितत्थे कहेज विक्खेवणी पच्छा ॥ २१॥ १०३ ॥ वेणतितस्स० गाहा । वेणइतो जो तप्पढमयाए सवणाभिमुहो तस्स अक्खेवणी कहेतबा ससमयगहितत्थस्स पच्छा विक्खेवणीकहं ॥ २१ ॥१०३॥ जम्हा अक्खेवणिअक्खित्ता जे जीवा ते लभंति सम्मत्तं । विक्खेवणीए भज गाढतरागं व मिच्छतं ॥ २२ ॥ १०४॥ अक्खेवणिअक्खित्ता गाहा । अक्खेवणीए अक्खित्ता सम्मत्तं लभेजा। विक्खेवणीए पुण भयणिजं गाढतरागं व मिच्छत्तं । आगाढमिच्छादिहिस्स ससमतो वण्णिजंतो रोयति, मिच्छत्तोवहतत्तेण तस्स कादोसा ण सद्दहति, सुहुमत्तणेण य अबुज्झमाणो अदोसा मण्णेज्जा. अतो भण्णति-गाढतरागं व मिच्छत्तं ॥ २२ ॥ १०४ ॥ एसा धम्मकहा मीसिता धम्मो अत्थो कामो उवइस्सइ जत्थ सुत्त-कव्वेसु। ___ लोगे वेदे समए सा उ कहा मीसिया णामं ॥ २३ ॥ १०५॥ धम्मो अत्यो कामो० गाहा । लोग-वेत-समताविरोधेण जहितं धम्म-ऽत्थ-कामा तिण्णि वि कहिजंति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600152
Book TitleDasakaliya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherPrakrut Granth Parishad
Publication Year1973
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size25 MB
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