SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 514
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार ॥१२६॥ होय तो ए कुंभीमां में जोएला ए जीवो बहारथी शी रीते आवी शके ? [१७४] केशी कुमार बोल्या:हे पएसी! ते पहेलां कोईवार धमेलु लोढुं जोएलुं छे खरं ? वा ते जाते कोईवार लोढुं धमावेलुं खरं ? भंते ! हा, धमेलु लोढं में जोपलुं छे अने तेने धमावेल पण छे. पएसी! पवु ए लोढुं अग्निमय लालचोळ थई गएलुं होय छे, ए वात खरीने ? हा, भंते ! ए वात खरी छे. तो हे पएसी! ए नक्कर लोढामां ते अग्नि शी रीते पेठो ? राइ जेटलुंय काणु लोढाने नथी, छतां तेमां अग्नि पेसी शके छे, तेम जीव पण सर्वत्र अनिरुद्ध गति शक्तिवाळो छे. ते पृथ्वीने अने शिला वगेरेने भेदीने पण गमे त्यां पेसी शके छे. हे पपसी ! बराबर सज्जड बंध करेली ए कुंभीमां पण ते जे जीवो जोया छे ते बधाय तेमां ""बहारथी पेठेला छे, माटे तुं पम | मान के शरीर अने जीव जुदां जुदां छे पण एक नथी. [१७५] राजा पएसी बोल्योः हे भंते ! कोई एक बाणावली तरुण पुरुष तरुण होय त्यारे एक साथे पांच वाणोने फेंकी शकवा जेटलो कुशळ होय, पण ते |ज पुरुष ज्यारे मंद ज्ञानवाळो बाळक हतो त्यारे एवी कुशळता धरावी शकतो होत तो हुँ पम मानत के जीव जुदो छे अने शरीर जुदुं छे. परंतु मंद शानवाळो ए बाळक" एवी कुशळता बताची शकतो नथी, माटे जीव अने शरीर एक छे ए मारो कल्पना सुसंगत छे. ११२ मुडदामा जे कीडा देखाय छे तेमना जीयो, कोई बीजो गतिथी च्यवीने मुडदाना शरीरमा पेठेला छे-उपजेला छे एवो आ | वाक्यनो आशय छे. ११३ राजा पएसोना आ तर्कनो अभिप्राय नीचे प्रमाणे जणाय छः आत्मवादी परम्पराओ आत्माने नित्य माने छे, एटले जेवो आत्मा | n For Private Personal Use Only तपेला लोढामां जेम अग्नि पेसे छे तेम काणा वगरनी कुंभीमा जीवो पेसे छे. बाल अने युवकना उदाह रणथी | अजीववाद २all Jain Educatio ibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy