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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार ॥१६॥ समये ए सूर्याभदेवनी रक्षा माटे सावधान रहेता से आत्मरक्षक देवो त्यां तेनी फरता चारे दिशामां चोकी पहेरो भरता ऊभा छे. ते सूर्याभदेवनी ए बधी दिव्य ऋद्धि छे, दिव्य शोभा छे अने दिव्य देवशक्ति छे. | सूर्याभदेव नी आवरदा प्र०-हे भगवन् ! ए सूर्याभदेवनी स्थिति-आवरदा केटली लांबी जणावेली छे ? अने तेना उ०-हे गौतम! पनी आवरदा चार पल्योपमनी जणावेली छे. प्र०-हे भगवन् ! सूर्याभदेवनी सामानिक सभामां बेसनारा देवोनी स्थिति केटली लांबी जणावेली छे ? पूर्व भवने लगता उ०-हे गौतम ! तेओनी आवरदा पण चार पल्योपमनी जणावेली छे. हे गौतम! ते सूर्याभदेव ए प्रकारनी महाऋद्धि, महाद्युति, महावळ, विशाळ यश, अतुल सुख अने महाप्रभाववाळो छे. प्रश्नोत्तरी [१४१] प्र०-हे भगवन् ! ते प्रकारनी दिव्य देवऋद्धि देवद्युति अने देवप्रभाव ए बधुंए सूर्याभदेवने केवी रीते मळ्यु ? तेणे ए | बधु केवी रीते प्राप्त कर्यु ? अने केवी रीते ए बधानो ते स्वामी थयो ? ए सूर्याभदेव पना पूर्वजन्ममां कोण हतो? पर्नु नाम गोत्र शुं हतुं ? ए कया गाम नगर के संनिवेशनो निवासी हतो? पणे पq ते शुं दीधुं शु खाधुं शुं कर्यु ने शुं आचर्यु के जेथी ते पवो २० महाप्रभावशाळी देव थयो ? अथवा तथाप्रकारना आर्य श्रमण के ब्राह्मणनी पासेथी तेणे पर्बु ते धार्मिक आर्य सुवचन शुं सांभळ्यु के जेथी ते एवो अतुल वैभववाळो उत्तम देव थयो ? उ०-'हे गौतम वगेरे श्रमणो! पम कहीने श्रमण भगवान महावीरे भगवान गौतमने आमंत्रीने आ प्रमाणे कहां: सूरियाभनुं वर्णन समाप्त । Jain Education ennal For Private Personal use only wi.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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