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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार हुकम कही संभळाव्योः सूर्याभनो हे देवानुप्रियो ! तमे शीघ्र जाओ अने आ सूर्याभविमानमा आवेला सिंगोडाना घाटना मागोमां त्रिकोमा चतुष्कोमां चत्वरोमां परिवार चतुर्मुखोमां अने महापथोमां तथा प्राकार अटारीओ द्वारो गोपुरो तोरणो आरामो उद्यानो बनो वनराजिओ काननो अने वनखंडोमां अर्थात् मारा आ विमानमां वसतां देवो अने देवीओ उक्त रीते नाने मोटे बधे स्थळे अर्चनिका करे पर्बु तेपने जाहेर करो. आभियोगिक देवोद्वारा पोताना स्वामी सूर्याभदेवनी उपर प्रमाणेनी घोषणा सांभळी त्या वसतां प्रत्येक देवो अने देवीओए उक्त । घोषणामां जणाव्या प्रमाणेनां ते ते प्रत्येक स्थळनी अर्चनिका करी. आ बधु पती गया पछी ते सूर्याभदेव नंदा पुष्करिणीप गयो, त्यां तेणे हाथ पग पखाळ्या अने त्यांथी ते, चार हजार सामानिक देवसभ्यो, चार पट्टराणीओ अने सोळ हजार आत्मरक्षक देवो वगेरे अनेक देव देवीओ साथे, मोटा ठाठमाठथी वाजते गाजते ॥९५॥ चरघोडो फरे तेम फरतो फरतो सीधो पोतानी सुधर्मासभा तरफ आव्यो, त्यां पूर्वद्वारे पेसी त्यांना मुख्य सिंहासन उपर पूर्वाभिमुख थईने बेठो. [१४०] ए सभामां ते सूर्याभदेवनी पश्चिमोत्तरे अने उत्तरपूर्वे ढाळेला चार हजार भद्रासनोमां सूर्याभदेवनो सामानिक सभाना सभ्यदेवो बेठा, पूर्वमां तेनी चार पट्टराणोओ, दक्षिणपूर्वमां आंतरसभाना आठ हजार देवो, दक्षिणमां मध्यसभाना दस हजार देवो, दक्षिणपश्चिममा बाह्य सभाना बार हजार देवो अने पश्चिमे सात सात सेनाधिपतिओ बेठा. वळी, ते सूर्याभदेवनी फरता चारे दिशामां चार चार हजार आत्मरक्षक देवो बेठा. ए आत्मरक्षक देवोप वरावर सजेलां कवचो पहेरेला, खेचेली कामठीबाळां धनुषो हाथमां धरी राखेलां, पोतपोताना पहेरवेशो उपर उत्तम चितपट्टो भरावेला, तेमांना केटलाकना हाथमा नीला पीळां अने रातां फळां इतां, केटलाकना हाथमां चाप, चारु, चर्म, दंड, खड्ग अने पाश वगेरे अनशस्त्रो झबकी |१५| रहेलां हतां, पोताना स्वामी सूर्याभदेव तरफ खूब भक्तिभावभरी दृष्टिए जोता तथा विनीत भावे किंकरभूत थईने रहेला अने समये Jain Education tema For Private Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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