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रायपसेण
पनवर वेदिकानुं वर्णन
इय सुत्तनो
सार
७७॥
मोटु लयन आय सुवर्णमय छे अने अत्यन्त मनोहरमा मनोहर छे.
[११९] ए लयननी चारे बाजु अडधुं योजन ऊंची अने पांचसें धनुष पहोळी पवी एक मोटी पद्मवरवेदिका छे अने पटलाज मापनो एक मोटो वनखंड ते लयनने घेरी रहेलो छे.
ते वेदिकाना थांभला, पाटियां, खीलीओ, खीलीओनी टोपीओ, बांसडा, वांसडा उपरनां नळियां, पाटीओ, मोभीयां, ढाकणां अने|| तेनां जालियां, गोखला वगेरे ए बधं विविध रत्नमय मणिमय वज्रमय अने सुवर्णरजतमय छ, पना केटलांक जाळियां नानी नानी टोकरीओवाळां, मोतीना पडदावाळां अने मोटी मोटो लटकती माळावाळा है. __ वेदिकामां ज्यां त्यां सर्वरत्नमय घोडानी वृषभनी अने सिंह वगेरेनी जोडो शोभी रही छे.
हे भंते ! ए बेदिकाने पद्मवरवेदिका कहेवार्नु शुं कारण ?
गौतम! ए वेदिकाना थांभला, पाटीयां, खीलीओ, खीलीओनी टोपीओ, मोभ अने जाळियां वगेरे दरेक भागमां,चोमासाना पड़ता। पाणीने रोकी शके एवा छत्राकार अनेक प्रकारनां सर्वरत्नमय सुंदर उत्पलो, कुमुदो, नलिनो, पुंडरीको बगेरे नाना प्रकारनां स्वीलेला पद्मो शोभी रह्यां छे, माटे हे चिरंजीव श्रमण ! ए वेदिकाने पद्मवरवेरिका कहेली छे.
हे भगवन् ! उपर वर्णवेली ए पद्मवरवेदिका शुं शाश्वत छे के अशाश्वत छ?
गौतम ! द्रव्यार्थिक नयनी दृष्टिप तो ए वेदिका शाश्वत छे, पण हे गौतम! ते वेदिकाना वर्णों गंधो, रसो अने स्पशोंनी दृष्टिए जोता अर्थात वर्णादि पर्यायोनी अपेक्षाए तो ते वेदिका अशाश्वत छे, माटे तेने शाश्वत पण कही छे अने अशाश्वत पण कही छे.
हे भगवन् ! उपर वर्णवेली वेदिका, शुं त्या कायम रहेवानी छे?
हे गौतम ! ए वेदिका, त्यां कोई दिवस न हती, नथी के नहि हशे एम तो न कहेवाय; पण ए, त्यां हमेशांने माटे हती, छे भने । हशे एम कहेवाय; माटे ते त्यां ध्रुव, शाश्वत, अव्यय, नित्य अने सदा अवस्थित छे एम मानवु जोइए.
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