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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
॥६॥
मज्जनगृहो, मंडनगृहो, प्रसाधनगृहो, गर्भगृहो, मोहनगृहो, शालागृहो, जाळीवाळ गृहो, चित्रगृहो, कुसुमगृहो, गंधगृहो, आरिसाभ
चार प्रासाबिनो शोभी रह्यां छे अने ते प्रत्येक गृहमा पूर्व कह्या प्रमाणे हंसासनो घगेरे आराम पनारां आसनो मांडेलां हे. । [११५] बळी, ते वनखंडोमां ज्यां त्यां सर्वरत्नमय पवा झळा झळां थता जाइनी वेलोना मंडपो, जूइनी वेलोना मंडपो, मल्लिका,
दो अने नवमालिका, वासंती, दधिवासुका, सूरिल्लि-सूरजमुखी, नागरवेल, नाग, अतिमुक्तक, अप्फोया अने मालुकानी लताओना मंडपो
उपकारिका फेलापला छे.
लयन [११६] ते प्रत्येक मंडपमा हस अने गरुड वगेरेना घाटना, ऊंचा ढळता अने लांबा पवा केटलाय सर्वरत्नमय शिलापट्टको ढाळेला छे. ते बधाय शिलापट्टको माखण जेवा सुंबाळा कोमळ अने देदीप्यमान छे.
हे चिरंजीव श्रमण ! से स्थळे अनेक देयो अने देवीओ से छे, सूए छे, विहरे छे, हसे छे, रमे छे, रतिक्रीडा करे छे अने ए रीते पोते पूर्व उपार्जेला शुभ कल्याणमय भगलरूप पुण्यकर्मोना फलविपाकोने भोमवता आनंदपूर्वक विचरे छे. । [११७] वळी, ते धनखंडोनी बच्चोवच्च पांचसे योजन ऊंचा अने अढीसो योजन पहोळा पवा चार मोटा प्रासादो शोभी रह्या २०
छे. प्रासादोनां भोयतळियां तद्दन सपाट छे अने तेमां चंदरवा सिंहासनो यगेरे उपकरणो यथास्थाने गोठवाएला छे. । तेमांना एक प्रासादा अशोकदेव, धोजामां सप्तपर्णदेव, श्रीजामां चंपकदेव अने चोथामां चूतकदेव एम चार देवोनो निवास (छ. ए चारे देवो मोटी दिव्य समृद्धिवाळा अने पल्योपमप्रमाण आयुष्यचाळा .
११८] अतिशय सुंदर एवा ते सूर्याभनामना देवधिमाननो अंदरनो भूभाग तहन सपाट अने अत्यंत रमणीय छे. त्यां पण घणा देवो अने देवीओ फरे छे, बेसे छे, हसे छे, रतिक्रीडा करे छे अने आनंद माणता विचरे छे.
ते विमानना ए भूभागनी बच्चोपच्च लाख योजन लावू पहोठं पधु एक मोटुं उपकारिकालयन छेः तेनो घेरावो त्रण लाख सोळ हजार बसें सत्तावीस योजन, त्रण कोश, अट्ठावीससें धनुष, सेर आंगळ अने उपर ओछु वधतुं अउधुं आंगळ छे. प पषु ।
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माननो अंदरनो भूभागमा विचरे छे.
तेनो घेरायोपवं
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