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________________ रायसेनइय सुत्तनो सार ॥७८॥ Jain Education [१२०] उपकारिकालयननी फरतो जे वनखंड वर्णवेलो छे तेनो चक्रवालविष्कंभ बे योजनथी कांइक ओछो छे अने तेनो घेरावो तो ते लयनना जेटलो ज छे. प वनखंडमां पण अनेक देवो अने देवीओ फरे छे, हसे छे, बेसे छे, सूप छे अने रतिक्रीडा करतां विहरे छे. [१२१] प लथनमी फरतां चारे दिशामां बार चार सोपानो गोवेलां छे. प सोपानो उपर तोरणो ध्वजो अने छत्रो वगेरे घणा मनहर पदार्थों झूली रह्या छे. लयननं भयतळ, मणिरत्न अने वज्र वगेरे बहुमूल्य धातुओथी बधिलुं छे अने वळी ते तहर सपाट अने चारे बाजु झगारा मारतुं शोभी रह्युं छे. _[१२२] लयनना ते समतल भूभागनी बच्चोवच पांच आवेलो छे. योजन उंचो अने अढीसो योजन पहोलो एवो एक मोटो मुख्य प्रासाद ते मुख्य प्रासादनी फरता भने लेना करतां ऊंचाई अने पहोळाईमां अडधा एवा बीजा चार प्रासादो आवी रहेला छे. वळी, ए आजुबाजु आवेला चार प्रासादोनी आसपास तेमने वींटळाईने तेमना करतां ऊंचाइप अने पहोळाइप अडधा एवा बीजा १० चार महालयो सोहामणा आवेला छे. वळी, सोहामणा ए चार महालयोने घेरीने ऊमेला पण मापमां तेना करतां अडधा पवा बीजा चार महालयो त्यां दीपी रहेला छे. आ हेला चार महालयोनी ऊंचाइ ६२ ॥ योजन अने पहोळाइ ३१ योजन उपर एक कोश छे. ए बधाय प्रासादोनी अंदर चंदरवा सिंहासन वगेरे शोभनिक उपकरणो गोठवापलां छे अने उपर धजाओ तोरणो अने आठआठ मंगळो झूली रह्यां छे. १५ [१२३] एम अनेक प्रासादोथी वींटापला ते मूळ प्रासादधी उत्तरपूर्वमां अर्थात् ईशानखूणामां एक मोटी सुधर्मा सभा आवेली छेएनी लंबाई सो योजन, पहोळाइ पचास योजन अने उंचाइ बहोंतेर योजन छे. जेमनी उपर अनेक प्रकारनां तोरणो पूतळीओ अने For Private & Personal Use Only सुधर्मा सभा अने मंडपो Jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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