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रायप सेणइय सुत्तनो
सार
॥६६॥
त्यां ज पाछो चाल्यो गयो.
[९०] पना गया पछी 'भगवन्' एम कहीने चौद पूर्वने जाणनारा, चार ज्ञानथी युक्त, सर्वाक्षरसंनिपाती, महातपस्वी सूर्याभनी ए देवमायाने जोहने शंकाशील थयेला अने कुतूहलवाळा बनेला भगवान गौतम भ्रमण, भगवान महावीरने चांदी नमीने नम्रपणे आ प्रमाणे वोल्या.
[९१] प्र०—हे भगवन् ! ते सूर्याभिदेवनी ए दिव्य देवमाया, ए दिव्य देवद्युति, ए दिव्य देवानुभाव क्यां जतो रह्यो समाई गयो ?
[२२] उ० - हे गौतम! सूर्याभदेवे सर्जेली ए देवमाया तेना शरीरमां अती रही, तेना शरीरमां समाई गई.
[१३] प्र० - हे भगवन् ! से क्या कारणथी एम बन्युं ?
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क्या ५
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[ ९४] उ०- हे गौतम! बहार अने अन्दर छाण वगेरेथी लींपेली गुपेली फरती वंडीवाळी बन्ध वारणांवाळी उंडी अने पवन न भराय पवी जेम कोई एक मोटी शिखरबंधी शाळा होय, प शाळानी पासे माणसोनुं एक मोटुं टोलुं ऊभुं होय अने प वखते ए टोळु आकाशमां एक मोटुं पाणीभर्यु वादळु जूप तथा ए वादळं हमणांज वरसशे एम जो टोळाने लागे तो जेम ए टोकुं पासेनी प शाळामां पेसी जाय, तेम प देवमाया सूर्याभना शरीरमां समाई गई अथवा प शाळा बहार उभेलु टोळं पोतानी सामे चडी आवता वंटोळियाने जुए तो पण जेम ए पासेनी शाळामां पेसी जाय, तेम ए देवमाया सूर्याभना शरीरमां समा गई एम में कहधुं छे. [ ९९ ] वळी, गौतमे पूछ के -
प्र० - हे भगवन् ! सूर्याभदेवनुं सूर्याभविमान क्यां जणावेलुं छे ?
[९६] उ०- हे गौतम! जम्बूद्वीप नामना द्वीपमां मन्दर पर्वतथी दक्षिणे आ रत्नप्रभा नामनी पृथ्वी छे, तेना रमणीय समतल भूभागथी ऊंचे चन्द्र सूर्य ग्रहगण नक्षत्र अने तारकाओ आवेलां छे, त्यांथी आगळ घणां योजनो सेंकडो योजनो हजारो योजनो
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९० शंकाशील श्रीगौतमनो प्रश्न अने
भगवाननुं
प्रतिवचन
९५-९६
सूर्याभदेवनुं
विमान क्यां
छे ? एवा श्रीगौतमना
प्रश्ननो
आपेलो
उत्तर
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