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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार [२५] श्रमण भगवान महावीरे सूर्याभदेवनी उपर्युक्त विनंतीने आदर न आप्यो, अनुमति न आपी अने ते तरफ मौन राख्यु. [१६] त्यारपछी बोजीवार, त्रीजीवार पण सूर्याभदेवे एवीज विनंती करी अमे तेना उत्तरमां भगवान महावीरे तेनो आदर न करता मात्र मौन ज धरी राख्यु. छेवटे ते सूर्याभदेव, श्रमण भगवान महावीरने त्रण प्रदक्षिणा दई, चांदी नमी उत्तर-पूर्वनी दिशा तरफ गयो. ईशान खूणामां जई तेणे वैक्रियसमुद्घात कर्यो, ते द्वारा तेणे संख्येय योजन सुधीना लांबा दंडने बहार काढ्यो, जाडां मोटा पुद्गलो तजी दीधां अने जोइए. तेवां यथासूक्ष्म पुद्गलोनो संचय कर्यो, वळी, बीजीवार वैक्रियसमुद्घात करी तेणे नरघाना उपरना ५ ७३ आत्मज्ञानी भगवाननी स्थितप्रज्ञ दशा जोतां तेओ सूर्याभदेवना संकल्पने आदर न आपे ते ज स्वाभाविक छे पण आ तरफ सूर्याभदेवनी मनोभूमिका जोतां ते, तेमनी पासे नाटक करी देखाडवा सिवाय बीजं करी पण शुं शके ? भक्तोनी बे कोटि छे. एक तो मनसा वचसा कायेन पोताना भजनीयने अनुसरनारा वा अनुसरवा माटे अतुल प्रयत्नशील रहेनारा अने बीजा तेमना मात्र प्रशंसको. प्रथम कोटिना भक्तो आवा बाह्य उपचारमा पडता नथी, एओ तो भजनीयना शुद्ध अनुसरणने ज पोतानी भक्ति समजे छे; त्यारे जेओ भजनीयने अनुसरवा जेटला प्रबळ पुरुषार्थशाळी नथी होता तेओ तेमना प्रशंसको रहोने तोष माने छे अने आवा प्रशंसको ज बाह्य उपचार सिवाय बीजी भक्ति सुधी पहेांची शक्ता नथी. ए प्रशंसको, पोताना भजनीयनो बाह्य उपचार सामे सख्त अणगमो जाणवा छताय तेमनी पोतानी जातनी प्रसन्नता माटे तेओ बाह्य उपचार सिवाय बीजं कशु करी शके तेवा नथी होता. आ परिस्थितिमाथी औपचारिक भक्तिनो आविर्भाव थयो लागे छे. आमांथी विवेकनुं तत्त्व नीकळी जाय तो ते औपचारिक भक्ति राष्ट्रीय, सामाजिक अने वैयक्तिक हानिने नीपजावे छे. वळी बीजु"यद्' यदाचरति शिष्टः तत् तदेवेतरो जनः" ए उक्तिनु तत्त्व पण भगवानना अणगमामा रहेलुं छे ए ध्यानमा राखवार्नु छे. टीकाकार, सूर्याभदेवना ए नाट्यविधिने स्वाध्याय वगेरे कर्तव्यनो विघातक बतावे छे ("गौतमादीनां च नाट्यविधेः स्वाध्यायादिविघातकारित्वात्"-विवरण पृ० १२१ पं०-१०). सूर्याभनी वीनंतीनो भगवाने करेलो अनादर ॥५७॥ Jivanitainelibrary.org For Private Personal Use Only Jan Education
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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