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________________ रायपसेण इय सुत्तनो सार ॥५६॥ [२१] ते वखते थमण भगवान महावीरे पोताना दर्शनार्थ आवेला सूर्याभदेवने, आमलकप्पाना राजा-राणीने तथा आमलकप्पामाथी आवेली मोटी जनसभाने धर्मदेशना संभळावी. देशना सांभळी जनता तो पोतपोताने ठेकाणे चाली गई. ५२ सूर्यामे [१२] देशना सांभळीने प्रसाद पामेला अने आल्हादित हृदयवाळा सूर्याभदेवे ऊभा थईने प्रणामपूर्वक श्रमण भगवान महावीरने भगवंतने आ प्रमाणे पूछयुः पूज्य ५३ भगवंत प्र०-हे भगवन् ! शु सूर्याभदेव भवसिद्धिक-भव्य छे के अभवसिद्धिक-अभव्य छे? सम्यग्दृष्टिवाळो छे के मिथ्याष्टिवाळो छे?|५| नो उत्तर संसारमा परिमितपणे भमनारो छे के अनंतकाळ सुधी भमनारो छे ? बोधिनी प्राप्ति थवी तेने सारु सुलभ छे के दुर्लभ छे? शुं ते ५४ भगवंत आराधक छ के विराधक छे? ते चरम शरीरी छे के अचरम शरीरी छे ? पासे नाच [५३] 'हे सूर्याभ !' पम कहीने श्रमण भगवान महावीरे तेने नीचे प्रमाणे उत्तर आप्योः |करी बताउ०-हे सूर्याभ ! तुं भव्य छो, सम्यग्दृष्टिवाळो छो, संसारमा परिमितपणे भमनारो छो, तने बोधिनी प्राप्ति थवी सुलभ छे, तुं | ववानी आराधक छो अने तुं चरमशरीरी छो. सूर्याभनी [१४] भगवाने आपेलो उत्तर सांभळीने सूर्याभदेवर्नु चित्त आनंदित थयुं अने परम सौमनस्य युक्त थयु भगवाननो उत्तर सांभळ्या वीनंती पछी ए सूर्याभदेवे भगवानने वांदी नमी आ प्रमाणे विनंती करी: "हे भगवन् ! तमे बधुं जाणो छो अने जुओ छो, ज्यां ज्यां जे छे ते बधु तमे जाणो छो अने जुओ छो, सर्व काळना बनावोने जाणो छो अने जुओ छो, सर्व भावोने तमे जाणो छो अने जुओ छोः मारी दिव्य ऋद्धिसिद्धिने, में प्राप्त करेली दिव्य देवद्युतिने अने दिव्य देवानुभावने पण पहेलां अने पछी तमे जाणो छो अने जुओ छोः तो हे भगवन् ! आप देवानुप्रिय तरफनी मारी भक्तिने लीधे हुं एवी इच्छा करूं छु के मारी दिव्य ऋद्धिसिद्धि, ||१५ दिव्य देवद्युति अने दिव्य देवप्रभाव तथा बत्रीश प्रकारनी दिव्य नाट्यकळा आ गौतम वगेरे श्रमणनिग्रंथोने देखाहूं." For Private Personal use only Miainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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