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________________ रायपसेणइय सुत्तनो खार Jain Education Int natio | टाम ज आमलकप्पाना अवसालवणचैत्यमां ज्यां श्रमण भगवान महावीर ऊतर्या छे त्यां आयी लाग्यो. त्यां आवतां ज तेणे ए दिव्य यान- विमान साथै श्रमण भगवान महावीरनी त्रण प्रदक्षिणा करी अने भगवानथी उत्तर पूर्वना भागमां ईशान खूणामां तेणे एयानविमानमे धरतीथी चार आंगळ अद्धर राखी ऊभुं राख्युं. [४९] मोटा परिवारवाळी पोतानी चार पट्टराणीओ, गांधर्वोनुं अने नाटकीयाओनुं टोलुं प बधा साधे प सूर्याभदेव पयानविमान उपरथी ऊतरी नीचे आव्यो. त्यारवाद सूर्याभदेवना चार हजार सामानिक देवो अने प यान विमानमां आवेला बीजा या देवो अने देवीओ क्रमशः नीचे आव्यां. एवा मोटा परिवारथी वींटापलो सूर्याभदेव, पोतानी सर्व प्रकारनी दिव्य ऋद्धि साथे, देववाद्योना मधुर घोष साथे चालतो चालतो श्रमण भगवान महावीर तरफ आव्यो, त्रण प्रदक्षिणा करी, वांदी, नमी तेमने विनयनम्र रीते कहेवा लाग्योः “हे भगवन्! हुं सूर्याभदेव मारा सकल परिवार समेत, आप देवानुप्रियने चंदन करुं हुं नमन करुं हुं अने आपनी पर्युपासमा करूं लुं." [५०] "हे सूर्याभ !” एम कही श्रमण भगवान महावीरे सूर्याभदेवने आ प्रमाणे कः " हे सूर्याभ ! ए पुरातन छे, हे सूर्याभ ! ए जीत छे, हे सूर्याभ ! ए कृत्य छे, हे सूर्याभ ! प करणीय छे, हे सूर्याभ ! ए आचरापलं छे अने हे सूर्याभ ! ए संमत थपलुं छे के 'भवनपतिना, वानव्यंतरना, ज्योतिषिकना अने वैमानिक वर्गना देवो अरहंत भगवन्तोने वांदे छे, नमे छे, अने पछी पोतपोतानां नाम गोत्रो कहे छे,' तो हे सूर्याभदेव ! तुं जे करे छे ते पुरातन छे अने संमत थपलुं छे." भगवाननी साथै सूर्याभ देवनुं संभा पण ॥५५॥ श्रमण भगवान महावीरनुं कथन सांभळी सूर्याभदेव बहु हर्षित थयो, प्रफुल्ल थयो अने घणो ज संतुष्ट थयोः पछी तेमने वांदी १५ नमी तेमनाथी बहु नजीक नहि, तेम बहु दूर नहि, एवी रीते बेसी ते सूर्याभदेव तेमनी शुश्रूषा करतो सामो रही विनयपूर्वक हाथ जोडी श्रमण भगवान महावीरनी पर्युपासना करवा लाग्यो. For Private & Personal Use Only winelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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