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________________ रायपसेणइय सुत्तनो ॥४॥ सुशोभित, चंद्र मे, उज्ज्वळ-धोळु ऊंचुं छत्र चालतुं हतुं. पछी जेना उपर पावडीओनी सुंदर जोडी अने पादपीठ मूकेला छे, एबुं| मणि अने रत्ननी कारीगरीथी आश्चर्य पमाडनारं उत्तम सिंहासन अनेक दास देवोना सभा उपर चालतुं हतुं. त्यारवाद वज्रमांथी बनावेलो, चकचकतो, घसीने सुधाळो करेलो, गोळ आकारवाळो, पचरंगी नानी नानी हजारो धजाओथी शोभतो, छत्राकारे गोठवारली विजयदैजयंती पताकाथी युक्त, अतिशय ऊंचो-हजार योजन ऊंचो माटे ज आकाशने अडकतो मोटामां मोटो इन्द्रध्वज चालतो हतो. एनी पछवाडे सुंदर वेषभूषावाळा, सजधज थपला, सर्व प्रकारना अलंकारोथी विशेष देखावडा लागता पांच सेनाधिपतिओ तेमना मोटा सुभटसमुदाय साथे बेठेला हता, पमनी पाछळ पोतपोतानां टोळा साथे, पोतपोताना नेजा (१) साथे, पोतपोतानी विशिष्ट वेषभूषा साथे ए आभियोगिक देवो अने तेमनी देवीओ गोठवापली हती. त्यारबाद-छेक छेल्ले-ते सूर्याभविमानमां रहेनारां बीजा देवो अने देवीओ पोतपोतानी सर्व प्रकारनी ऋद्धि सिद्धि, द्युति, बळ, वेषभूषा अने परिवार साथे ए यान-विमाननी सवारीमा जोडायला हताः आ रीते विमानना स्वामी सूर्याभदेवनी आगळ पाछळ अने बन्चे बाजुए अनेक देव देवीओ गोठवापलां हतां अने ए यानविमान ए वधांने उपाडी वेगवंध गाजतुं गति करतुं हतुं. [४] ए रीते सजधज थपलो सूर्याभदेव, पोताना ए दिव्य ठाठमाठने बतावतो वतावतो सौधर्मकल्पनी वच्चे थइने नोकळ्यो, अने सौधर्मकल्पथी उत्तरमा आवेला नीचे आववाना-निर्याणमार्ग तरफ तेणे पोताना ए यान-विमानने हंकायु. ते, प निर्याणमार्गने पहोंचतां लाख योजननी वेगवाळी गतिथी झपाटाबंध भारतवर्ष तरफ आववा लाग्यो, आ तरफ आवतां आवतां तेने असंख्य द्वीपो अने समुद्रो उल्लंघवा पड्या. ए रीते वेगबंध गति करतो ए सूर्याभदेव नंदीश्वर द्वीप सुधी आवी पहोंच्यो अने त्यां अग्निकोणमां आवेला रतिकर पर्वत पासे आवी लाग्यो. आ रतिकर पर्वत पासे आवीने ए सूर्याभदेवे पूर्वे वर्णवेली पोतानी देवमाया संकेली लीधी अने जंबूद्वीपना भारतवर्षमां पहोंचवा जेवी साधारण व्यवस्था करी लीघो. हवे ते, रतिकर पर्वतथी जंबूद्वीप भणी आववाना मार्गे पोताना यान-विमानने हंकारवा लाग्यो अने तुरतमांज भारतवर्षमा पहोंच्यो. त्यां पहोंची तेणे आमलकप्पानो रस्तो लीधो अने झपा Jain Education intimathsal For Private & Personal use only wlinelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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