________________
रायपसेणइय सुत्तनो
सार
१३भगवान
महावीर प्रत्ये सूर्याभदेवनी भक्ति
[१३] भगवाननुं दर्शन करीने ते सूर्याभदेव हर्षवाळो, तोषवाळो अने आनंदित चित्तवाळो थयो तथा भगवान तरफ एना । मनमां प्रीति थई-परम सौमनस्य थयु. हर्षना आवेगथी तेनुं हृदय धबकवा लाग्युं, एनां कमळ जेवां उत्तम नेत्रो खीली उठ्यां, आनंदना वेगथी एनां उत्तम कडां बेरखां केयूर मुगट बन्ने कुंडलो अने सुंदर हारथी सुशोभित छाती-ए बधु चलायमान हलुंहलुं-थई गयुं.
नीचे सुधी लटकता प्रलंबने अने कंपायमान थएलां बीजां आभूषणोने धारण करतो ते सूर्याभ देव भगवान महावीरने जोतां ज संभ्रम साथे त्वरा अने चपळतापूर्वक सिंहासनथी ऊभो थई गयो, पछी तेणे पादपीठ उपर चडी पादुकाओ-मोजडीओ-काढी नाखी अने तीर्थकरनी सामे सात आठ पगला जई डाबो धुंटण उंचो करी जमणो धुंटण धरणी उपर ढाळी मस्तकने प्रण वार धरणी उपर नमाव्यु. पछी जराक माथाने उंचु करी कडां अने बेरखांथी स्तब्ध थपली भुजाओने मेगी करी, दशे नख एक बीजाने अडे ए रीते बन्ने हथेळीओ साथे राखी शिरसावर्तपूर्वक मस्तके अंजलि जोडी ते आ प्रमाणे बोल्योः
[१४] आदिकर, तीर्थकर [कं०७ पृ० १८ पं०२-] यावत् अजर अमर स्थानने प्राप्त थपला अरिहंत भगवंतोने नमस्कार थाओ,
[१५] अजरअमर स्थानने मेळववानी वृत्तिवाळा श्रमण भगवान महावीरने नमस्कार थाओ, अहीं रहेलो हुं त्यां रहेला श्रमण भग-|| वान महावीरने वांदु छु, त्यां रहेला श्रमण भगवान महावीर अहीं रहेला मने जुप छः एम करीने ते सूर्याभ देव भगवानने वांदी नमी पाछो पूर्वाभिमुख थई सिंहासन उपर बेसी गयो.
[२६] त्यार पछी ते सूर्याभ देवना आत्मामा २ चिंतनरूप, अभिलाषरूप आ-आ प्रकारनो मनोगत संकल्प-विचार-उत्पन्न थयाः | ६० चित्तमा खरेखरो हर्षनो उद्रेक था शरीर उपर ते उद्रेकनी जे असर थाय छे ते, आ कंडिकामा प्रत्यक्षवत् वर्णवेली छे. ६१ आ स्थळे सूर्याभ देवना मुखमां शकस्तवनो आखोय पाठ मूकवामां आव्यो छे पण ते सुप्रसिद्ध होवाने लीधे अहीं आपेलो नथी. ६२ एकज भावने बताववा पर्यायरूप अनेक शब्दो मूकत्रानी पद्धति सूत्रोमां प्रचलित छ, प्राचीन वैदिक वा बौद्धग्रंथोमांय तेवी वाक्यपद्धति
Jain Educatintetional
For Private Personel Use Only
How.jainelibrary.org