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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार ॥३४॥ काले ते समये "सौधर्मकल्पमा सूर्याभ विमानमा सुधर्मा नामनी सभामा सूर्याभ सिंहासन उपर बेठेलो सूर्याभदेव पोताना विपुल अवः ।। धिवढे समग्र जंबूद्वीप तरफ नजर नांखी तेने बराबर निरखी रह्यो हतो. ए सूर्याभदेवना परिवारमा चार हजार सामानिक देवो, पोतपोताना परिवारथी विटळापली तेनी चार पट्टराणीओ, त्रण सभाओ, सात सेनाओ, सात सेनाधिपतिओ, सोळ हजार आत्मरक्षक देवो अने सूर्याभविमानमा रहेनारा बोजा पण घणा देवो अने देवीओ हता. सूर्याभ सिंहासन उपर बेठेलो ते सपरिवार सूर्याभदेव-नाट्य, गीत, वाद्य, तंत्री, तल, ताल, बीजां विविध वाजांओ अने वादनकळामां दक्ष पुरुष जेने वगाडे छे पवो मेघनी पेठे गाजतो मृदंग-ए बधांमांथी नीकळता मधुर स्वरो सांभळतो सांभळतो दिव्य भोगोने भोगवतो रहेतो हतो.. सूर्याभ देवे समग्र जंबूद्वीपने निरखतां निरखतां भारतवर्षमां आमलकप्पा नगरीनी बहार अंबसालवण चैत्यमा आवी रहेला अने योग्य अवग्रहपूर्वक संयम अने तपथी आत्माने भावित करता श्रमण भगवान महावीरने जोया. जेमकेः-'वादिओनुं समोसरण' ["चत्तारि वाइसमोसरणा"-"वादिनः तीथिकाः समवसरन्ति अवतरन्ति एषु इति समवसरणानि-विविधमतमौलकाः"(स्थानांग पृ. २६४-२६८] 'समवसरण'नो श्रीजो अर्थ रहेठाण-रहेबानुं स्थान-थाय छे. ('समोसरणाईति-समवसरणानि वसतयः ४ क्व भगवान् अवस्थितः इति जानीत-भगवान क्या-क्या मकानमां-ऊतर्या छे ते जाणो-उववाइय पृ. ६१) अने चोथो अर्थ त्रिगडु-समवसरणनी रचना-थाय छे. उक्त प्रणे अर्थों तद्दन सादा स्वाभाविक छे त्यारे आ चौथो अर्थ विशेष अलंकारवाळो छे. अहीं तो पीजो रहेठाण' अर्थ बंध बेसे एम छे...। ५९ सौधर्म स्वर्ग अने सुधर्मा सभाना नामनो निर्देश बौद्धग्रंथोमां पण आवे छे. जुओ भगवतीसूत्रनो मारो अनुवाद भाग २, पृ०१५ १२९-१३० टिप्पण. Jain Educationalimanal For Private & Personal Use Only wwinelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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