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________________ रायपण इय सुचनो सार ॥३३॥ तो जरूर तेने छेदीने विजय वरवाना ज. (५) "घेर सोना रूपाना कैलास पर्वत जेवडा असंख्य पहाडो होय तोपण ए दुःखद तृष्णा शमती नथी-ए तो आकाश जेवी अमाप छे. पर्नु शमन तो विवेकपूर्वक रहेवामा छे अने ते प्रमाणे पोतपोताना सर्व व्यवहारो चलाववामां छे." सर्व सुखकर भ्रातृभावने फरीषार याद देवरावी भगवाने पोतानी देशना पूरी करी. [११] आमलकप्पानो ए जनसमुदाय भगवाननी उक्त देशना सांभळीने विशेष प्रमुदित थयो अने 'भगवाने निग्रंथ प्रवचन ठीक ५ कही बताव्यु छे' 'पवो कोई श्रमण के ब्राह्मण नथी जे आ प्रकारनी धर्मदेशना करी शके' पम कहेतो कहेतो प समुदाय पोतपोताना स्थानके जइ पहोंच्यो. राजा सेय अने राणी धारिणी पण भगवाननी अपूर्व देशना सांभळीने प्रसन्न प्रसन्न थइ गयां, तेमणे भगवानने वंदन-नमन करी केटलाक प्रश्नोना खुलासा पूछी लीधा अने पछी तेओ निग्रंथ प्रवचननी तेमज भगवाननी यशोगाथा गातां गातां पोताने महालये आवी पहोंच्यां. [१२] जे समये श्रमण भगवान महावीर आमलकप्पा नगरीनी बहार आवेला अंबसालवण चैत्यनासमवसरणमां विराजता हता ते (५) सुवण्णरुप्पस्स य पव्वया भवे सिया हु केलाससमा असंखया। नरस्स लुद्धस्स न तेहि किंचि इच्छा हु आगाससमा अणतया ॥४८॥ -अध्ययन ९ ५८ 'सम्' अने 'अव' उपसर्गपूर्वक 'सृ-सरकवू-जवू' धातुमाथी 'समवसरण' शब्द नीपजेलो छे. भगवानना के तेमना शिष्योना आगमनने सूचबवा सूत्रोमा अनेक ठेकाणे 'समोसरई' क्रियापद वपराएलु छे. आजनी भाषामा 'पधारवं' क्रियापद जे भावने सूचवे छे ते भाव ए| १५ 'समोसरई' क्रियापदनो जणाय छे. आ उपरथी 'समवसरण'नो प्रथम अर्थ 'पधारवू' थाय. बीजो अर्थ 'जुदा जुदा मतवाळाओनो मेळो' थाय. Jain Education a l For Private Personal Use Only ॥ ॥
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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