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रायपसेणइय सुत्तनो
सार
॥३१॥
भान भूली जाय छे पटले आखर ते मानव मटी दानवी वृत्ति उपर आवी जाय छे. आम थवाथी मनुष्योनी परस्पर हितकारिणी बंधुतानी वृत्ति शिथिल थाय छे, तेथी अन्योअन्य वरवृत्ति पेदा थइ सर्वत्र अशांति ऊपजे छे. शुं मनुष्य, पशु के पक्षीओ वा आ स्थावर जगत ए बधु प धखधखती अशांतिमा होमाय छे, माटे ज धन पेदा करनार लोकोए परस्पर बंधुतानी वृत्तिनो नाश न थाय ते तरफ विशेष लक्ष्य राखी पोतपोतानो व्यवहार करवो घटे. अन्यथा कोईनुं श्रेय थवानुं नथी. मात्र धन पेदा करनारो आ विचार भाग्ये ज करे छे के तेनी धनतृष्णानी आगमा आजसुधीमां केटलां मानधी होमायां, केटलां पशुओ अने पक्षी बळीने खाख ५ थइ गयां, केटलां कोटि वृक्षो कपायां, केटलां बधां स्वच्छ पाणीनो होम थई गयो, केटली बधी स्वच्छ हवाने बगाडी नाखी तेनो विनाश कयों अने विमाश पामती केटली आगे केटकेटलाने बाळी नाख्या. धन पेदा करवानी आ रीतर्नु ज नाम दुर्बुद्धि छे-घोर हिंसा-परस्पर बंधतानी वृत्ति शिथिल थवी प दानवी वृत्तिनुं मुख्य लक्षण छे. ए धर्मनी, पुण्यनी, सुखनी अने प्राणीमात्रनी नाशक छे प भूल न जोइए. क्रियाकांडर्नु हाडपिंजर ए विशुद्ध धर्म नथी पण ते हाडपिंजरमा परस्पर बंधुतारूप अहिंसावृत्तिनो प्राण संचारवो ए ज शुद्ध धर्मनो पायो छे, माटे ज आर्य पुरुषोए एक अहिंसाने परम धर्म कहेलो छे.
(२) "विलासी मनुष्य पम मानतो होय के मारूं शरण तो धन छे, मारे परस्पर बंधुतानी वृत्ति केळववानी शी जरुर छे? तो पम मानतो ए मूढ खांड खाय छे. मात्र धन होवाने लीधे आजसुधीमां कोईनुं त्राण थयु नथी अने हवे पछी थशे पण नहि. आ लोक के परलोकमां तेज सुखी थशे के जेनामां व्यापक भ्रातृभावनी ज्योति प्रकटी होय अने जेनो बधो व्यवहार ए व्यापक भ्रातृभाव उपरज चालतो होय.
(३) "तृष्णानुं चक्र पटलु बधु प्रबळ छे के मनुष्य तेनाथी शीघ्र छूटो थइ शकतो नथो-इच्छा छतां पोताना व्यवहारोमा विवेक(२) वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते इमम्मि लोए अदुवा परस्थ ॥५॥ (३) खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे ॥१०॥
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