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________________ खीमां आवेला हता; वळी मोटा जनसमुदायथी विटाएला केटलाक मात्र पगे चालीने जता हता. ए बधा जनाराओनो अवाज पटलो रायपसेण ११०भगवान | बधो थतो हतो के जाणे कोइ खळभळेलो महासमुद्र गाजतो न होय. इय सुत्तनो | महावीरनी आमलकप्पा नगरीथी बहार ईशान खूणामां आवेला अंबसालवण चैत्यमां पओ बधा जइ पहोंच्या. त्यां छत्र वगेरे तीर्थकरना अतिशेषो जोतां तेओ पोतपोतानां यान वाहन ऊभां राखी ऊतरी पड्या-यानो छोडी नाख्यां, वाहनो चरवा छूटां मूकी दोधां अने धर्मसंशोएओ भगवाननी पासे आवी पहोंच्या, तेमने त्रण प्रदक्षिणा दीधी, वंदना करी नमस्कार कयों अने भगवाननी शुश्रूषा करता तेओ बहु ५ | परवाणा ॥३०॥ दूर नहि तेम बहु नजीक नहि ए रीते हाथ जोडीने तेमनी सामे विनयपूर्वक बेठा. आमलकप्पानो राजा सेय, राणी धारिणी पण बधांनी साथे श्रमण भगवान महावीरनी सेवामा जोडायां हता. आमलकप्पाना राजा सेय, राणी धारिणी अने त्यांना जनसमुदायने उद्देशीने श्रमणगणमा परिवर्तन करनार श्रमण भगवान महावीरे पोतानी धर्मसंशोधक वाणी संभळावी. तेमणे "कमु के: (१) "जे मनुष्यो दुर्बुद्धिथी प्रेराइने पोपको करी ते द्वारा धन पेदा करे छे तेओ आ विराट विश्वने दुःखना ऊंडा खाडामां धक्केले छे अने पोते पण सतत तरफडियां मारतां मारतां झुरी झुरीने उपडी जाय छे-छेवटे लेश पण शांति पामता नथी. आ संसारमां शांति पण छे अने अशांति पण छे. शांति के अशांति मेळववी मानवीना पोताना हाथनीज वात छे. मनुष्यमां तृष्णावृत्ति विशेष बळवान छे तेने लीधे ए सुखदुःखनु खरं स्वरूप समजी शकतो नथी, उलटुं दुःखने सुख समजे छे अने सुखने दुःख समजे छे. ए तृष्णावृत्तिनी प्रबळ बळवत्ताने ज लीधे क्रोध वधे छे, मूढता व्यापे छे अने मनुष्य पोतानु-पोताना स्वरूपy-पोताना कर्तव्यर्नु ५७ भगवाननी धर्मसंशोधक देशना जे अहीं जणावली छे तेनुं मूळ उत्तराध्ययन सूत्रनां नीचेनां पयोमा छः (१) जे पावकम्मेहि धणं मणुस्सा समाययंति अमति गहाय । पहाय ते पास पयट्ठिए नरे वेराणुबद्धा नरयं उति ॥२॥ Jain Education in all For Private & Personal Use Only womainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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