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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार एमांना केटलाक" श्रमण भगवान महावीरने वांदवानी-नमवानी वृत्तिवाळा हता, केटलाक मात्र भगवानने जोवाना इच्छुक हता, केटलाक तो 'भगवान केवा होय' ए जातना कुतूहलथी जवा प्रेराया हता, केटलाकने अर्थविनिश्चय-खुलासा मेळववा हता, केटलाकने पम हतुं के त्यां जइशें तो अथुतपूर्व सांभळशुं अने सांभळ्युं छे ते संबंधी शंकाओ दूर करशु, केटलाके पम धारेलु के आपणे तो भगवाननी पासे सर्व प्रकारे मुंडभाव धारण करी अगार-घर छोडी अनगार थशु, केटलाके एवो संकल्प करेलो के आपणे पांच अणुव्रतवाळो अने सात शिक्षाव्रतवाळो पम बार प्रकारनो गृहिधर्म स्वीकारशुं, केटलाक तो मात्र जिनभक्तिना रागथी प्रेराया हता अने|५ केटलाक गतानुगतिक हता अर्थात् तेओ पम समजेला के आ बधा जाय छे त्यारे आपणे पण जवु प शिष्टता छे-योग्य छः पम जुदी ॥२९॥ जुदी वृत्तिवाळा तेओ बधा भगवाननी पासे जवा नीकळ्या. श्रमण भगवान महावीरनी पासे जनारा ए बधा न्हापला, तेमणे बलिकर्म करेलु, तिलक वगेरे लगाडेलां, माथे डोके माळाओ नाखेली, हार अर्धद्वार प्रणसरो हार लटकतां झूमणां कटिसूत्र-कणदोरो वगेरे आभरणो पहेरेलां अने सुंदर वस्त्रो सजेला तथा शरीरे चंदन लगाडेलु, एओ केटलाक घोडे चडेला, केटलाक हाथी उपर बेठेला, रथ उपर चडेला, घुम्मटवाळी पालखीमां बेठेला, अने झूलती पाल५५ सभा-समितिओमा जनाराना मानसर्नु आबेहूब चित्रण आ कंडिकामा छे. ५६ कोई गृहस्थ ज्ञानी पासे धर्म सांभळवा जाय के राजदरबारमा जाय त्यारे 'बलिकर्म' करीने जाय-एवा अनेक उल्लेखो जैन आगमोमा विद्यमान छे. पण ए 'बलिकर्म' शुं छे ? ते संबंधी स्पष्ट माहिती मळती नथी. 'पोतपोताना गृहदेवो पासे बलि चडाववी-निवेद धरवूभेट धरवी' ऐवो बलिकर्मनो अर्थ टीकाकारे आपेलो छे. ("कृतं बलिकर्म स्वगृहदेवतानां यैः ते तथा"-उवयाइय पृ. ५९) आमा 'गृहदेवता' |१५| कोण अने तेनु शु स्वरूप-ए प्रश्न ऊभो रहे छे. Jan Education For Private Personel Use Only vodiainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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