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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार ॥२८॥ चतुर्मुखोमां-चोकठामां-राजमार्गमा अने शेरीओमां-ज्यां सांभळो त्यां घणा लोकों परस्पर पम कहेता हता के हे देवानुप्रियो! आकाशगत छत्र वगेरे साथे संयम अने तपथी आत्माने भावित करता श्रमण भगवान महावीर अहीं आव्या छे तो तेवा प्रकारना अरहंत भगवंतोना मात्र नामगोत्र पण काने पडे तोय मोटो लाभ छे, तो पछी तेमनी सामे जवानो तेमने वांदवानो नमवानो तेमनी पासे जइ केटलाक खुलासा पूछवानो अने तेमनी पयुपासना-सेवा करवानो प्रसंग मळे तो जे लाभ थाय ते माटे कहेवू ज शु? __आर्य पुरुषर्नु एक पण धार्मिक सुवचन काने पडे तोपण ते श्रेयरूप छे तो पछी तेमनी पासे जइ विपुल अर्थ-घणी हकीकतो. जाणवानो प्रसंग सांपडे तो तेथी जे श्रेय थाय ते माटे कहेवू ज शु? तो हे देवानुप्रियो ! आपणे जईए अने श्रमण भगवान महावीरने वांदीए नमीए सत्कारीप सन्मानीए अने कल्याणरूप मंगळमय दिव्य चैत्यनी पेठे तेमनी पर्युपासना करीए तो ए, आपणे माटे आ भव परभव अने जन्म जन्मांतरमां हितरूप थशे, सुखरूप अने निःश्रेयसरूप नीवडशे. ___ आम विचारीने घणा उग्रो उग्रपुत्रो भोगो भोगपुत्रो राजन्यो क्षत्रियो ब्राह्मणो भटो योधो प्रशास्ताओ मल्लकिओ लिच्छविओ १० लिच्छविपुत्रो अने बीजा घणा मांडलिक राजाओ युवराजो राजमान्य पुरुषो मडंबाधिपो कौटुंबिको-कणबीओ इभ्यो श्रेष्ठिओ सेनापतिओ सार्थवाहो वगेरे अनेक लोको ज्यां भगवान ऊतर्या हता त्यां जवा नीकळ्या. ५३ कोइ परिवर्तनकारी के संशोधक वक्ता आवे त्यारे संप्रदायना भेदभाव विना दरेक प्रजा तेने सांभळ्या इच्छे छे एवं लोकमानस आजे पण छे, तो पहेलो पण एवं ज हशे एम आ उपरथी जणाय छे. ५४ उग्र भोग राजन्य क्षत्रिय भट योध मल्लकि लिच्छवि वगेरे, ते समयना प्रसिद्ध प्रसिद्ध राजवंशोनां खास विशेष नामो छ ए ध्यानमा ||१५/ राखवार्नु छ, अर्थात् भटो एटले सुभटो, योधो एटले युद्ध करनाराओ, एवो ते नामोनो अर्थ बराबर नथी. Jain Education lerroa For Private & Personel Use Only 1 jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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