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________________ रायपसेग सार नार, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी अने अपुनरावर्तननी शिवरूप, अचल, अरोग, अक्षय अव्यावाध सिद्धिने मेळववाना अभिलाषी पवा हता. ८ भगवान [८] एमना शरीरनी उंचाई सात हाथ, संस्थान समचोरस अने संहनन-शरीरनो बांधो-बन जेवो मजबूत हतो. शरीरनी अंद. | महावीरनुं रना वायुओ अनुकूळ रहेता, मलाशय कंक पक्षीना मलाशय जेवो नीरोग, जठर पारेवाना जठर जेवू तीव्र, मलविसर्जननां स्थान शारीरिक पक्षीनां मलविसर्जननां स्थान जेवां निर्लेप अने पीठ, बन्ने तरफनां पांसळां तथा उरु सुजात हतां. वर्णन ___ एमनो श्वास सुगंधी," नीरोगी उत्तम मांस, छबी उदात्त अने प्रशस्त, शरीर निर्मळ अने अंगअंगमांथी झरतुं लावण्य असाधा-५ रण हतुं. | ॥१९॥ छे त्यारे क्याय क्यांय 'जावय' ने बदले 'जाणय' पद देखाय छे. विशेष विचार करता 'जाणय' ने बदले 'जावय' पाठ वधारे सुसंगत छे. 'तिन्नाणं तारयाण' वगेरे विशेषणो जोता 'जावयाणं' पाठ ज बराबर छे. आ उपरांत ए शक्रस्तवमा बीजा अनेक पाठभेदो छे. ४० भगवानना शरीरनुं वर्णन जोता एम मालूम पडे छे के तेओ गृहस्थाश्रममा विशेषे करोने ब्यायामप्रिय हशे. शरीरनी मजबूताइ अने सुडोळपणुं लाववामां व्यायाम ए मुख्य कारण छे. जैन सूत्रोमा ठेकठेकाणे व्यायामनी पद्धतिना वर्णनो तो आवे ज छे. कल्पसूत्रमा भगवान |१० महावीरना पिता राजा सिद्धार्थनो अखाडो प्रसिद्ध छे. भगवानना मलाशय अने जठर- जे वर्णन करेलुं छे, ते तेमनी मिताहारिता अने पथ्यचारिताने सूचवे छे. खानपानना आचारो वर्णवता जैन सूत्रोमां खानपानना प्रमाण विषे खूब भार मूकवामां आव्यो छे. ४१ योगी ज्यारे योगनी साधना पूरी करे छे, शरीर, मन अने वचन उपर पूरेपूरो काबू मेळवे छे त्यारे तेनां शरीरमा लावण्य, स्कृति, अने तेज वधु ने वधु प्रमाणमा प्रकटे छे. उपरांत केटलीक बीजी शक्तिओनो पण तेमा आविर्भाव थाय छे. पातंजलयोगसूत्रना विभूतिपादमा जे विभूतिओ वर्णवेली छे, ते बधी खरा योगीने सुलभ होय छे. भगवान महावीरना शरीरनुं वर्णन तेमनी योगलब्धिने अनुरूप छे. Jain Educatie internal For Private & Personel Use Only dow.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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