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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार ॥१८॥ भावित करता रहेवा लाग्या. ए श्रमण भगवान महावीर आदिकर, तीर्थकर, स्वयंसंबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवरपुण्डरीक, पुरुषवरगंधहस्ती, अभयदाता, नेत्रदाता, मार्गदर्शक, शरणदाता, जीवितदाता, द्वीपसमान, त्राणरूप, शरणरूप, गति-आश्रय-रूप, आधाररुप,धर्मचक्रने प्रवर्तावनार, विशुद्ध ज्ञान अने दर्शनथी युक्त, छद्मरहित, जिन-जय मेळवनार, जितावनार, तरनार, तारनार, मुक्त, मुकावनार, बुद्ध, बोध आप छ एथी ए दिशा घणा जूना समयथी लौकिक दृष्टिए पवित्र मनाती आवौ छे. धणा जूना काळमा केटलाक लोको सूर्यना पूजक हता. पूर्वाभिमुख बेसवामा सूर्य तरफना जूना सद्भावनी निशानी रहेली मालूम पडे छे. आ परंपराने अनुसरीने बीजा बधा सामान्य लोको पण पूर्व दिशाने महत्त्व आपे छे. जैन दृष्टिए तो कोई दिशाने खास कशु महत्त्व होय एवं जणातुं नथी. भगवान महावीरना समयमां एक एवो संप्रदाय हतो के जे दिशाओनी पूजाओमां मानतो. जैन सूत्रोमा ए संप्रदायर्नु नाम 'दिसापोक्खी' जणावेलु छे. भगवाने दिशाओनी आ जडपूजाना प्रचारने रोकवा माटे अने दिशाना माहात्म्यनी निष्प्रयोजनता बताववा माटे भगवती सूत्रमा दिशाओने जीवाजीवात्मक कहीने वर्णवेली छे. दिशाओ मात्र आकाशरूप होई जीवाजीवरूप समस्त पदार्थना आधाररूप छे ए बात खरी छे, पण एटला मात्रथी तेनीजडपूजा करवी जराय उपयोगी नथी. ____३८ भगवाननो परिचय आपता स्तुतिरूप वर्णकमां भगवानने द्वीपसमान, प्राणरूप, शरणरूप, आश्रयरूप अने आधाररूप, जणावेला छे. तेने लगतो मूळ पाठ "दीवो, ताणं, सरणं, गई, पइट्ठा" आ प्रकारनो छे. मूर्तिपूजक संप्रदायना लोकोमां आ पाठनो प्रचार नथी पण स्थानकवासी संप्रदायना लोकोमा आनो प्रचार छे. · दीवो' वगेरे शब्दो प्रथमाविभक्तिवाळा छे पण तेमने बधाने छट्ठी विभक्तिवाळा करीने प्रस्तुत स्तुतिमा योजवाना छे. ३९ शक्रस्तवमा वा भगवाननो परिचय आपता वर्णकमा घणा पाठभेदो मालूम पडे छे. केटलेक स्थळे 'जिण' पछी 'जावय' शब्द आवे Jain Education a l For Private Personal Use Only ||ww-lainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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