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________________ रायपसेणइयत्त ||४|| देववाचक क्षमाश्रमणे रचेला उक्त नंदीसूत्रमां समस्त मूळ जैन श्रुतनो नामग्राह सविस्तर उल्लेख आवे छे. तेमां 'गमिकश्रुत े - अग मिकश्रुत' 'अंगप्रविष्टश्रुत' अंगबाह्यश्रुत' 'कालिकत - उत्कालिकत एम अनेक विभागो बतावीने ए क्षमाश्रमणे श्रुतज्ञानने वर्णव्यु छे. तेमां उत्कालिकश्रुतनां नामो गणावतां प्रस्तुत रायपसेणइअने नोंघेलुं छे. ( समितिनुं नंदीसूत्र पृ० २०२ ) नंदीसूत्रमां आवेली रायपसेणइअना नामनी नोंध उपरथी एना समय विशे जरूर थोडं विचारी शकाय ग्रन्थनो समय नंदीसूत्रना प्रणेता देववाचके सूत्रना आरंभमां पोतानी परंपरा बतावेली छे. जेमां पोताना पूर्वपुरुषोनां बीजां अनेक नामो साथे ब्रह्मद्वीपिक शाखाना आर्य सिंहसूरि, माथुरीवाचनाना सूत्रधार आर्य स्कन्दिलाचार्य, आर्य नागार्जुनाचार्य, नागिलकुल (नागेन्द्रकुल) ना आर्य भूतदिन्नाचार्यनां नामो पण नौवेलां छे. कल्पसूत्रमी प्रांत वंचाती स्थविरावलीमां जणाव्युं छे के "आर्य सिंहगिरिना बार शिष्योः आर्य धनगिरि, आर्यवज्र, आर्य समिअ अने आर्य अरिहृदिन्न. तेमां आर्य समिअथी ब्रह्मद्वीपिक शाखानो उद्भव थयो अने आर्य वज्रस्वामीना शिष्य श्रीवज्रसेन द्वारा आर्य नाइली शाखा नीकळी”. २ जेमा वारंवार एकसरखा पाठो आवता होय ते 'गमिक' श्रुत कहेवाय. आ श्रुतमां दृष्टिवादसूत्रनो ज मात्र समावेश थाय छे. आचारांग वगेरे 'अगमिक' श्रुत लेखाय छे. ७ ३ गणधरो रचेलं श्रुत ते 'अंगप्रविष्ट' अने स्थविरोए रचेलं श्रुत ते 'अंगबाह्य श्रुत' समजवु अथवा नियत पाठवालुं श्रुत ते 'अंगप्रविष्ट' श्रुत अने अनियत पाठवाळु श्रुत ते 'अंगबाह्य श्रुत'. ४ जे श्रुत अमुक नियत काळे ज भणी शकाय ते 'कालिक' श्रत अने जेना भणवा माटे कोइ नियत काळ न होय ते 'उत्कालिक श्रुत' Jain Education Intermitional For Private & Personal Use Only. प्रवेशक jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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