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________________ रायपसेणइय सुत्तनो सार वळी, वज्रना डांडावाळां रूपेरी पट्टावाळां कमळ जेवां सुगन्धी, काळां, नीलां, लाल, पीळां अने धोळां चामरो टांगेलां इतां प उपरान्त ए अशोक तरु उपर बीजां घणां उपराउपर लटकतां छत्रो, उपराउपर लटकती धजाओ, घंट अने चामरनी जोडी, सर्वरत्नमय पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुंडरीक, महापुंडरीक शतपत्र अने सहस्रपत्रना हाथो खोडेला" इता. [४] पवा पूजापात्र प अशोकवृक्षनी नीचे एक मोटी काळी शिलापाट हती. अशोक वृक्षना थडनी लगोलग आवेली ए शिलापाट उंचाई, लम्बाई अने पहोळाईमां प्रमाणसर हती. जांबुडां, नीलां कमळनो ढगलो, मरकतमणि, बीयानुं वृक्ष, आंखनी कीकी अने तरवारना वर्ण जेवी ते काळी शिलापाट, आंजणनां वृक्षो, मेघनो समूह, नीलां कमळ अने बलदेवना वखनी माफक चमकती हती तथा भमराओनुं झुंड, आंखनो सुरमो, गळीनी गोळीओ, मंगळाने मंगळ तरीके सूचवेला छे. स्वर्गमां देवोनी सवारीमा पण आज आठ मंगळ सर्व प्रथम चाले छे जे निगठ लोको द्रव्य मंगळ उपर ओछो भार आपे छे तेओ ज आ आठ पदार्थोने मंगळ तरीके जणावे छे तेनुं कारण समजातुं नथी. मंदिरमां ज्यां जिनमूर्ति होय छे त्यां पण आ आठ मंगलनी पाटली पूजाय छे ते महदाश्चर्यनो विषय छे. बीजुं तो ठीक पण 'मत्स्यना युगल' ने मंगल कहेवानुं शुं कारण हशे ? १० अथवा ए आठ मंगळोनी पाछळ कोइ प्रकारनो विशेष इतिहास छुपाएको हो ? २४ जूना समयमा लोको 'अशोकवृक्ष' ने पूजता हरो, ए, अशोकना आ जातना वर्णन उपरथी जणाय छे. हालमा पण खीजडा वगेरेना वृक्षो उपर लोको कपडा लटकावे छे, नानां नानी घोडियां के ढींगला बांधे छे अने धजा के त्रिशूल वगेरे खोडे छे. वैदिक लोको पीपळाने अने तुलसीने पूजे छे. बौद्ध लोको गयाना बोधिवृक्षने अने जैन लोकोनो एक भाग रायणना झाडने पूजे छे. क्षत्रियोनुं शमीपूजन तो सुप्रसिद्ध छे ज. वृक्षपूजानी आ परंपरा बहु बखतथी चालतो जणाय छे एनी पाछळ वृक्षोनी उपयोगिता, काइ पुण्य पुरुषनी स्मृति के बहे - १८ मनां पटळ छे ए खास शोधनो विषय छे. Jain Educatio International For Private & Personal Use Only ४ शिला पाटूनुं वर्णन ॥११॥ www.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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