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________________ रायपसेणइय सुतनो सार बळदो, पाडाओ, गायो अने घेटांओ, ए नगरीनुं पशुधन हतुं, ज्यांनां कळामय आकारवाळां अनेक चैत्यो भने पवा ज सुंदर पण्यतरुणीना - अनेक संनिवेशो प्रेक्षकोनां मनने आकर्षतां तां. आखीय नगरीमा कोइ नहि लांचियो,' कोइ नहि खूनी, कोइ नहि गांठियो, कोइ नहि चोर अने कोइ नहि दंडपाशिक- सोनेरी टोळीवाळो पथी प नगरी सर्व प्रकारना उपद्रवोथी रहित हती, नगरीमा रहेनारा भिक्षुओ भिक्षाने सारी रोते मेळवी शकता हता, त्यां रहेनारा प्रत्येक मनुष्यना जानमालने लेश पण हाण थवानो संभव न हतो तेथी ते विश्वासपूर्वक सुखथी त्यां रद्दी शकतो, अनेक कोटिना कौटुम्बिक -कणवी लोको त्यां सुखे सुखे रहेता हता. अर्थात् एक गामनो कूकडो चालतो चालतो बीजे गाम पहेांची शके तेटलं नजीकनुं गाम भीलोना प्रदेशमा अने मगधमां कुक्कुटसंपात्याम नजरे जोएला छे. ४ सूत्रनो 'धण्यतरुणी' शब्द वांचीने कोई भडकी न जाय. पण्यतरुणीनी ए समयनी संस्था समाजमा आदरपात्र हती. श्रीवात्स्यायन पोताना कामसूत्रमा जणावे छे के - "शील अने रूपना गुणोथी युक्त एवी वेश्या जनसमाजमा आसन मेळवे छे, राजा तेने पूजे छे अने गुणवंत जनो १० प्रशंसे छे, कलाना विद्यार्थिओ कळा मेळवावा तेने प्रार्थे छे अने तेनो आदर करे छे." आजकाल आ संस्था विशेष विकृत धरली देखाय छे पण ते वखते प्रायः तेनुं नहि होय एम आ वर्णनथी मानी शकाय. ५ आ तो मात्र वर्णना छे, कोइ सजीव के निर्जीवनुं वर्णन करतां मात्र तेनी ऊजळी बाजुनं ज वर्णन करवानो प्रघात, कविओमां आदिकवि वाल्मीकिथी चाल्यो आवे छे अने तेने लीधे तेओ केटलेक स्थळे केवळ ऊनळु ऊजळु ज बधुं वर्णवे छे. मानवस्वभाव जोता पण आ बनवुं असंभवित जेवुं जणाय छे. छतां नगरीना आ वर्णन उपरथी 'एमा रहेनारा एकंदर सारा हता' एम तो कल्वी शकाय ६ मूलमा आ माटे 'अणेगकोडि' शब्द छे. टीकाकार मलयगिरि, तेनो अर्थ करतां लखे छे के "अनेककोटिभिः अनेककोटिसंख्या कैः” Jain Educationtemtional For Private & Personal Use Only १५ ॥३॥ w.jainelibrary.org
SR No.600148
Book TitleRaipaseniya Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1938
Total Pages536
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_rajprashniya
File Size11 MB
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